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वेदना संवेदना अपाटव कपट
को त्याग बढ़ चली हूँ मैं
हर तिमिर की आहटों का पथ
बदल अब ना रुकी हूँ मैं
साथ दो न प्राण लो अब
चलने दो मुझे ओ प्राण प्रिये ।

निश्चल हृदय की वेदना को
छुपते हुए क्यों ले चली मैं
प्राण ये चंचल अलौकिक
सोचते तुझको प्रतिदिन
आह विरह का त्यजन कर
चलने दो मुझे ओ प्राण प्रिये ।

अपरिमित अजेय का पल
मृदुल मन में ले चली मैं
तुम हो दीपक जलो प्रतिपल
प्रकाश गौरव  बन चलो अब
चलने दो मुझे ओ प्राण प्रिये ।

मौन कर हर वितथ पनघट
साथ नौका की धार ले चली मैं
मृत्यु की परछाई में सुने हर
पथ की आस ले चली मैं
दूर से ही साथ दो अब
चलने दो मुझे ओ प्राण प्रिये ।

--- दीप्ति शर्मा

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Comment by कवि - राज बुन्दॆली on July 9, 2012 at 1:44am

वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह क्या कमाल दीप्ति जी,,,,,,,,,,गज़ब गज़ब गज़ब,,,,,,,बधाई आपको

Comment by deepti sharma on July 9, 2012 at 1:15am

  प्रदीप जी  आपका बहुत बहुत आभार

Comment by deepti sharma on July 6, 2012 at 11:22pm

AVINASH S BAGDE ji

बहुत बहुत आभार

Comment by deepti sharma on July 6, 2012 at 11:22pm

डॉ. सूर्या बाली "सूरज ji

बहुत बहुत आभार

Comment by deepti sharma on July 6, 2012 at 11:20pm

neeraj ji   बहुत बहुत आभार

Comment by AVINASH S BAGDE on July 6, 2012 at 8:47pm

अपरिमित अजेय का पल
मृदुल मन में ले चली मैं
तुम हो दीपक जलो प्रतिपल
प्रकाश गौरव  बन चलो अब
चलने दो मुझे ओ प्राण प्रिये ।दीप्ति जी  सुंदर कविता....

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on July 6, 2012 at 7:59pm

दीप्ति जी बहुत सुंदर कविता है आपकी। खासकर ये पंक्तियाँ दिल को छू गईं....

अपरिमित अजेय का पल
मृदुल मन में ले चली मैं
तुम हो दीपक जलो प्रतिपल
प्रकाश गौरव  बन चलो अब...............बहुत बहुत बधाई !!

Comment by deepti sharma on July 6, 2012 at 3:54pm

"आदरणीय गुरु जनों एवं मित्रों कविता पसंद करने को बहुत बहुत आभारी हूँ ।"

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 6, 2012 at 12:10am

अपरिमित अजेय का पल
मृदुल मन में ले चली मैं
तुम हो दीपक जलो प्रतिपल
प्रकाश सौरभ बन चलो अब
चलने दो मुझे ओ प्राण प्रिये ।

सुन्दर शब्दों से सजी प्यारी रचना ....नारी की जिम्मेदारियों और मनोभावों का अद्भुत और सुन्दर वर्णन 

भ्रमर 5 
भ्रमर का दर्द और दर्पण  

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 5, 2012 at 11:17pm

दीप्ती शर्माजी, आपकी भावप्रवणता गहरी है और तदनुरूप आपके पास शब्द भी हैं.  आपसे आगे और स्पष्ट तथा मौलिक की आपेक्षा है.  आशा बलवती हुई है. अपने प्रयास को विगत की प्रच्छाया से बचा कर रखें. 

हार्दिक शुभेच्छाएँ.

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