सुगंध सुहानी आयेंगी इस मोड़ के बाद
यादें गाँव की लाएंगी इस मोड़ के बाद
जिस नीम पे झूला करता था बचपन मेरा
वही डालियाँ बुलाएंगी इस मोड़ के बाद
अब तक बसी हैं फसलें जो मेरी नज़रों में
देखो अभी लहरायेंगी इस मोड़ के बाद
बिछुड़ गई थी दोस्ती जीवन की राहों में
वो झप्पियाँ बरसाएंगी इस मोड़ के बाद
नखरों से खाते थे जिन हाथों से निवाले
वो अंगुलियाँ तरसायेंगी इस मोड़ के बाद
मचल रही होंगी बड़ी भाभी और बहनिया
बैग मेरा खुलवायेंगी इस मोड़ के बाद
समझ लेता था मैं जिनके मन की भाषाएँ
वो गइयां पूंछ हिलाएंगी इस मोड़ के बाद
देख के फौजी वर्दी भर आयेंगी आँखें
माँ आँचल में छुपायेंगी इस मोड़ के बाद
मिलती हैं जो जाकर मेरे घर के द्वार से
पगडंडियाँ अब आयेंगी इस मोड़ के बाद
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Comment
हार्दिक आभार मृदु जी आपकी सराहना और उत्साह वर्धन के लिए
क्या खूबसूरत भाव संजोये हैं आपने आदरणीया राजेशकुमारी जी इस कृति में आपने एक फौजी के विचारों को इतने सहज रूप में लिख दिया है आपको शत-शत नमन एवं हार्दिक बधाई
बहुत- बहुत हार्दिक बधाई प्राची जी रचना के आंतरिक भावों की सही नब्ज पकड़ी जो चित्र आपने पहचाना वही है पहली बार फौजी वर्दी पहनकर किसी का लाडला गाँव वापस आते हुए क्या क्या सोचता है बस उन्ही भावों को उकेरा है
एक नाज़ुक सा पल , जब फ़ौजी अपने घर लौट रहा है/ या फिर एक मुकाम के बाद उसे लौटना है.....उसके मन का भावों का, अन्तर्वार्ता का पूरा का पूरा X -RAY उतार कर रख दिया आपने आदरणीया राजेश कुमारी जी. इस सुन्दर भावाभिव्यक्ति पर हार्दिक बधाई.
संदीप कुमार पटेल जी हार्दिक आभार
आह समेटे इस सुन्दर काव्य को आपने भावों से अलंकृत किया है वो अद्भुत है
सुन्दर सहज शब्दावली में सारी बात कह डाली है आपने
लाजवाब बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीया राजेश कुमारी जी
हार्दिक आभार अरुन शर्मा जी
आदरणीया बहुत ही खूबसूरती से लिखी है ये रचना आपने. बधाई स्वीकार करें.
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