पानी था, या हवा था,
वो किस दिल, की दुआ था,
ठंडा मौसम, कड़ी लू
वो गम था, या दवा था,
लगता था, वो खुदा पर,
किस्मत था, या जुआ था,
बेवजह तबियत, जुदा थी,
शायद हमे, कुछ हुआ था,
बहता आंसू, मेरा ही,
घायल नस को, छुआ था.
Comment
आदरणीय आप का स्नेह मिला टिपण्णी के जरिये, बहुत बहुत शुक्रिया, बस इसी तरह से आप सब अगर साथ रहा तो वो मंजिल दूर नहीं है, यहीं कहीं है बस दिखाई नहीं दे रही है.
भाई अरुण शर्मा, बहुत ही उम्दा. संयत, सहज और सुरुचिपूर्ण.
इस सधे हुए प्रयास के लिये मेरी हार्दिक बधाई लीजिये. वैसे कोशिश कीजियेगा तो ये ग़ज़ल और निखर आयेगी.
और, संदीपभाई के कहे को स्वीकार कीजिये. बहरहाल, बहुत सुन्दर प्रयास किया है आपने.
शुभेच्छाएँ.
शुक्रिया मित्र अरुण हौंसला आफजाई के लिए.
आपका प्रयास अच्छा है इस बार ! करते रहिए ये विधा अभ्यास से ही सधेगी ! बाकी अभी के लिए संदीप जी की बात ध्यान दीजिए !
संदीप भाई एक बार फिर नज़र भर देख लेता हूँ, आपको कोई त्रुटी दिख रही हो तो कृपया अवगत कराएँ.
बेवजह तबियत, जुदा थी,
शायद हमे, कुछ हुआ था,
इस शेर को एक बार फिर देख लीजिये बाकी के शेर उम्दा हैं
संदीप भाई आपका स्नेह मिला हौंसला बढ गया. तहे दिल से शुक्रिया........
इस बार प्रयास सराहनीय है अरुण जी .....................
इस ग़ज़ल के लिए दाद हाजिर है
आदरेया सीमा जी बहुत बहुत शुक्रिया आभार.
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