मेहनत से यदि डर जाओगे बाबाजी
जीवन में क्या कर पाओगे बाबाजी
रोते रोते आये जैसे दुनिया में
वैसे ही तुम घर जाओगे बाबाजी
बाइक पर मोबाइल से मत बात करो
गिर जाओगे, मर जाओगे बाबाजी
पल दो पल भी अगर प्रभु को याद किया
भवसागर से तर जाओगे बाबाजी
कारें कितनी भी हों, काम न आएँगी
आखिर कान्धों पर जाओगे बाबाजी
प्यार किसी प्राणी से कर के तो देखो
तुम भीतर तक भर जाओगे बाबाजी
बच्चों की माँ धो डालेगी बेलन से
मदिरा पी कर गर जाओगे बाबाजी
'अलबेला' चुपचाप निकल लो महफ़िल से
वरना दिन भर सर खाओगे बाबाजी
-अलबेला खत्री
Comment
aapka hardik aabhaar Vedika ji.....
:-)
बहुत खूब!! बहुत खूब!!
बच्चों की माँ धो डालेगी बेलन से
मदिरा पी कर गर जाओगे बाबाजी
शानदार .. इतनी सुंदर सीधी सादी रचना मगर गहरे प्रहार करने वाली ,,देर से क्यों पदी ,, ???
शुभकामनायें !
सादर वेदिका
धन्यवाद भाई संजय जी
सादर
आदरणीय सीमा जी.........पाठक और कवि मित्रों की पसन्द सूची में आ जाने का बड़ा आनन्द है ...ये आनन्द आपने मुझे अनुभव कराया ,,,आपका आभारी हूँ
__सादर
वाह! वाह! आदरणीय अलबेला भाई जी... सुन्दर गजल पढ़ के आनंद आ गया...
सादर बधाई स्वीकारें.
धन्यवाद रेखा जी........
आप आये.........
अच्छा लगा
___सादर
अलबेला जी ,सादर नमस्ते
आपकी अनुकम्पा के समक्ष नत मस्तक हूँ भाईजी.........
आप की सराहना सर आँखों पर
___साभार....सादर
प्यार किसी प्राणी से कर के तो देखो
तुम भीतर तक भर जाओगे बाबाजी
’बाबाजी’ की ज़मीन पर, भाई अलबेलाजी, आपने इस मंच के माध्यम से बहुत कुछ साझा किया है. अक्सर शेर मज़ाकिया लहज़े के हैं लेकिन उनकी तासीर बिना संदेह गंभीर और निर्देश सूचक है. इस बात में लेश मात्र संशय नहीं कि आप सामाजिक ज़िम्मेदारियों के प्रति संवेदनशील हैं उन्हें को बखूबी निभाना जानते हैं.
आपके इस सद्प्रयास पर मेरी सादर बधाई.
शुक्रिया
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