प्रीत के उपहार
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हार्दिक आभार प्रिय दीप्ति जी
प्राची जी बहुत ही प्यारी छंद रूप माला है बहुत पसंद आई पहली पंक्ति ने ही मन मोह लिया
आदरणीया डॉ प्राची जी वाह
डॉ० प्राची जी, आपने मेरे सुझाव का मान रखा ...इस हेतु आपका हार्दिक आभार ! सादर
आदरणीय अम्बरीश श्रीवास्तव जी
डॉ० प्राची जी, मैं अति प्रसन्न हूँ कि आपने ‘रूपमाला’ छंद रचने का सफल प्रयास किया है.....साधुवाद......
फिर भी इनमें कुछ सुधार अपेक्षित है .....
सुधार हेतु सुझाव :
//झनक झन झाँझरी झनके , सावन की फुहार .
कँगन खन कलाई खनके , छेड़ इक मल्हार .
फहर फर फर उढ़े आँचल , प्रीत का इज़हार .
बावरा मन थिरके चँचल , प्रियतमः अभिसार .//
झनक-झन झांझर झनकती, छेड़ एक मल्हार.
खन खनन कंगन खनकते, सावनी मनुहार.
फहर-फर-फर आज आँचल, प्रीत का इज़हार.
बावरा मन थिरक चँचल, साजना अभिसार..
(मल्हार का उच्चारण आमतौर पर मल्हा-र किया जाता है अतः मेरी दृष्टि में इसे ‘इक’ के बजाय ‘एक’ लिखना ही सही रहेगा)
//धड़कनें मदहोश पागल , नयन छलके प्यार .
बोल कुछ बोलें नहीं लब , मौन सब व्यवहार .
शान्ति मुस्काँ और स्थिरता , प्रीत के उपहार .
झूमता जब प्रेम अँगना , बह चले रसधार.//
धड़कनें मदहोश पागल , नयन छलके प्यार .
बोल कुछ बोलें नहीं लब , मौन सब व्यवहार..
शान्ति, चिर-स्थायित्व, खुशियाँ, प्रीत के उपहार..
झूमता जब प्रेम अँगना , बह चले रसधार..
सादर
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