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मुझको भी जिंदगी की, जरुरत बना गई,
वो नज़रों से छु मुझे, खूबसूरत बना गई //

आँखों से तोड़ गयी, ख्वाबों की पंखुड़ियों को,
कांटो ने छोड़ दिया, जख्मी कर उंगलियों को //

देख तुझको निगाहों, में भर आया पानी,
देन है, ये हसीनो की, है मेहरबानी //

लगा था मेला, मैं नीलाम हो गया,
कि दिल का सौदा, मेरा काम हो गया //

क्या कहूँ उसको समझ नहीं आता,
दिल में रहता है, घर नहीं आता //

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Comment by अरुन 'अनन्त' on July 27, 2012 at 11:36am

भ्रमर जी एवं वसुधा जी बहुत-२ शुक्रिया.

Comment by Vasudha Nigam on July 27, 2012 at 11:22am

आँखों से तोड़ गयी, ख्वाबों की पंखुड़ियों को,
कांटो ने छोड़ दिया, जख्मी कर उंगलियों को // 

बहुत  गहरी अभिव्यक्ति बधाई॥

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 26, 2012 at 5:02pm

मुझको भी जिंदगी की, जरुरत बना गई,
वो नज़रों से छु मुझे, खूबसूरत बना गई // 

अरुण जी सुन्दर ....इस कला में आप माहिर हैं ..भावों का खजाना ..प्रणय और रोमांस 

जय श्री राधे 
भ्रमर ५ 

 

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