For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आखिर कोई कितना सुस्ताएगा

जिंदगी! एक अनबुझ पहेली है. जिसको आज तक कोई नहीं सुलझा पाया है. यह एक ऐसी पहेली है, जिसको जितना सुलझाओ, उतना ही उलझ जाती है. जिंदगी सुख-दुख के दायरे में सिमटी खुशियों के साथ शुरू होती है, लेकिन इसका अंत दुख और निराशा के साथ होता है. हंसते-मुस्कराते कोई नवजात जैसे-जैसे जिंदगी के रास्तों पर आगे बढ़ता है, वैसे-वैसे वह जिंदगी की उलझनों में उलझता जाता है. अपनी पहली करवट से ही उसको अहसास हो जाता है कि खुद मेहनत करने से ही खुशियां हासिल हो सकती है. इसलिए वह हर पल आगे बढऩे की कोशिश में लग जाता है. फिर तो संघर्ष का वह सफर शुरू हो जाता है जिसका अंत उसकी जिंदगी के अंत के साथ ही होता है. एक खुशी एक सत्य की तलाश में वह ताउम्र भटकता रहता है, लेकिन कभी उसका सामना खुशी और सत्य नहीं हो पाता. जिसके सानिध्य में उसको दो पल का सुकून मिल सके. बस वह कभी-कभी हताश और निराश होकर अपने मन को समझाने के लिए मान लेता है कि उसको खुशी हासिल हो गई है और वह थोड़ा सुस्ता लेता है. आखिर कोई कितना सुस्ताएगा. इस सुस्ताने के दायरे से जैसे ही वह बाहर निकलता है कि वैसे ही फिर उसको समस्याओं का चक्रव्यूह दिखाई देता है. मसलन बेरोजगार है तो रोजगार की तलाश, रोजगार है तो आमदनी की चिंता. अविवाहित है तो शादी की चिंता, शादी है तो बच्चों की समस्याएं, अपने सगे-संबंिधयों की चिंता. यह कुछ ऐसी समस्याएं है, जिनको सुलझाते-सुलझाते वह इतना उलझ जाता है कि खुद उसकी जिंदगी विकट पहेली बन जाती है. इन सबके बीच सिर्फ एक बात समझ आती है कि यही तो जिंदगी है, जिसने अपनी जिंदगी की पहेलियों को सुलझाने का प्रयास नहीं किया, तो क्या किया. माना जिंदगी एक अबूझ पहेली है और उसको सुलझाना नामुमकिन है, लेकिन फिर भी प्रयास तो किया ही जा सकता है. यह भी कटु सत्य है कि जो आया है, उसको एक न एक दिन जाना ही है, इस जहां से. फिर जिंदगी से क्या डरना, जिंदगी को चक्रव्यूह को तोडऩे का भरसक प्रयास करना होगा, भले ही वह टूटे या हम टूटे.

Views: 454

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 27, 2012 at 10:52am

जीवन के नजरिये पर बहुत सार्थक शब्दों से रची प्रस्तुति बहुत अच्छी 

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 27, 2012 at 9:28am

सुप्रभात हरीश भट्ठ जी, इस लेख के माध्यम से आपने जिंदगी को सार्थकता प्रदान की है... यह बिल्कुल सच है कि हमारी जिंदगी सदैव संघर्ष में ही बीतती हैं फिर भी  उन संघर्षों के दौरान कुछ पल ऐसे भी आते हैं जिनको जी लेने से मानो पूरी जिंदगी का सुख एक साथ ही मिल जाता है.....वास्तव में कर्म करने का नाम ही जिंदगी है .....सादर

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 27, 2012 at 8:13am

आदरणीय हरीश जी

                   सादर नमस्कार, जींदगी तो मैराथन दौड़ है रास्ते में रुक जाओ सुस्ता लो पी लो खा लो फिर उसी भीड़ में शामिल हो कर दौड़ने लगो. जो दौडता रहा वह जीत गया. क्या खोया क्या पाया. इस का हिसाब रखना तो मुश्किल ही है. इतनी फुर्सत ही कहाँ मिलेगी. जींदगी का सुन्दर चिटठा.

Comment by Albela Khatri on July 26, 2012 at 9:31pm

जीवन के मर्म पर चोट की है आपने हरीश भट्ट जी.....
बहुत कुछ कहती है
और कहने में सफल रहती है आपकी लेखनी..........

__अभिनन्दन !

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 26, 2012 at 8:02pm

यही तो जिंदगी है, जिसने अपनी जिंदगी की पहेलियों को सुलझाने का प्रयास नहीं किया, तो क्या किया. माना जिंदगी एक अबूझ पहेली है और उसको सुलझाना नामुमकिन है, लेकिन फिर भी प्रयास तो किया ही जा सकता है. यह भी कटु सत्य है कि जो आया है, उसको एक न एक दिन जाना ही है, इस जहां से. फिर जिंदगी से क्या डरना, जिंदगी को चक्रव्यूह को तोडऩे का भरसक प्रयास करना होगा, भले ही वह टूटे या हम टूटे.

हरीश भाई जी बहुत सुन्दर कथन आप के ...सुलझ जाए तो सहेली है नहीं तो अनबूझ पहेली तो है ही ...कुछ कुछ सुलझ जाती है जब चाहा जाए मन से तब और तब आनंद ही आनन्द  मस्त ...शांति तो अंत में ही    ..जय श्री राधे 

भ्रमर ५ 

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"जी, कुछ और प्रयास करने का अवसर मिलेगा। सादर.."
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"क्या उचित न होगा, कि, अगले आयोजन में हम सभी पुनः इसी छंद पर कार्य करें..  आप सभी की अनुमति…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय.  मैं प्रथम पद के अंतिम चरण की ओर इंगित कर रहा था. ..  कभी कहीं…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
""किंतु कहूँ एक बात, आदरणीय आपसे, कहीं-कहीं पंक्तियों के अर्थ में दुराव है".... जी!…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"जी जी .. हा हा हा ..  सादर"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य आदरणीय.. "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी  प्रयास पर आपकी उपस्थिति और मार्गदर्शन मिला..हार्दिक आभारआपका //जानिए कि रचना…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।छंदो पर उपस्थिति, स्नेह व मार्गदर्शन के लिए आभार। इस पर पुनः प्रयास…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। छंदो पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन।छंदों पर उपस्थिति उत्तसाहवर्धन और सुझाव के लिए आभार। प्रयास रहेगा कि…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"हर्दिक धन्यवाद, आदरणीय.. "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह वाह ..  दूसरा प्रयास है ये, बढिया अभ्यास है ये, बिम्ब और साधना का सुन्दर बहाव…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service