नेताजी का हो गया, कवियित्री से ब्याह,
नेतानी कविता लिखें, उनकी निकले आह,
उनकी निकले आह, सुनें जब भी वो दोहा,
लिखना विखना छोड़ पकाना सीखो पोहा,
चलो डार्लिंग किटी, रमी में जीतो बाजी,
समझाते हैं मस्त, नेतानी को नेताजी .......
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यह व्यंगात्मक हास्य रचना आपको पसंद आयी इस हेतु आपका आभार रेखा जी
इस प्रयास को सराहने हेतु आभार संदीप पटेल जी
आपको यह कुण्डलिया पसंद आयी, इस हेतु आपका आभार आ. अशोक रक्ताले जी
आपका हार्दिक आभार आदरणीय डॉ. सूर्या बाली जी
आदरणीय अरुण कुमार निगम जी, इस प्रथम हास्य रचना पर प्रयास को सराह कर उत्साहवर्धन करने के लिए हार्दिक आभार.
कुमार गौरव जी, आपने इस हास्य रचना को सराहा आपका आभार.
आदरणीय अलबेला जी, मेरे द्वारा रचित पहली हास्य रचना में आप सम हास्य सम्राट की वाह मिलना बहुत सुखद लग रहा है, इस हेतु आपका हार्दिक आभार.
हास्य रूप में कुंडली, नेता की फ़रियाद.
पढ़कर हमको आ गए, रमई काका याद..
डॉ० प्राची जी, सुंदर कुण्डली के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें! सादर ...
//नेताजी का हो गया, कवियित्री से ब्याह,
नेतानी कविता लिखें, उनकी निकले आह,
उनकी निकले आह, सुनें जब भी वो दोहा,
लिखना विखना छोड़ पकाना सीखो पोहा,
डार्लिंग जरा किटी रमी में जीतो बाजी,
समझाते रहते नेतानी को नेताजी .......//
रोले के अंतिम दोनों पदों में निम्न प्रकार से सुधार अपेक्षित है ......
नेताजी का हो गया, कवियित्री से ब्याह,
नेतानी कविता लिखें, उनकी निकले आह,
उनकी निकले आह, सुनें जब भी वो दोहा,
लिखना विखना छोड़ पकाना सीखो पोहा,
चलो डार्लिंग किटी, रमी में जीतो बाजी,
समझाते हैं मस्त, नेतानी को नेताजी .......
(नेतानी के 'ने' को गिरा कर पढ़ा गया है )
waah, majedaar aur badhiya kataksh....
ये रस भी होना चाहिए ....बहुत रोचक कुंडलियाँ
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