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"कील चुभी वो नहीं विलग "

"कील चुभी वो नहीं विलग "

वे कहते हैं सब भूल गये

हम कहते कुछ भी याद नहीं

कारण मैंने भी किया वही

जो उसने पिछले साल किये

अब उसके भी एक आगे है

मेरे भी पीछे बाँध दिए !!

रस्में पूर्ण समाज ख़ुशी

हम भी फिरते हैं ख़ुशी ख़ुशी

हुए मुखरित अंकुर दूर सहज

पर कील चुभी वो नहीं विलग !!

अब कील चुभी दो हाथ मिले

संतुष्ट सभी कुछ आस हिये

लुट जाओ उनका हार बने

रोको मोती ना डूब मरे !!

वे भूले क्या ? जब ध्यान करें

क्या याद नहीं ? हम याद करें

आधार एक छवि एक मिली

दो प्राणों की है एक जमीं !!

मरोड़ दो छोड़ दो वहीँ नव-पल्लव को

ये आहें सांसें लेने को शीश उभर आया है ,

पी जाओ विष हैं ठीक कहे ,

है समता ,हम भी भूल गए !!

 

 (पहला प्यार भूलता कहाँ है )

 

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५

कुल्लू यच पी 
१.०० पूर्वाह्न ७.८.२०१२ 

 

 

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Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 9, 2012 at 12:38am

दो प्राणों की है एक जमीं !!, 

आदरणीया राजेश कुमारी जी पहले प्यारी की झलक और यादें ,,,,रचना कुछ बयान कर पायी आप से सराहना मिली मन अभिभूत हुआ 
जय श्री राधे ...आभार 
भ्रमर ५ 
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 9, 2012 at 12:36am

दो प्राणों की है एक जमीं !!, 

आदरणीया रेखा जी ये पंक्तियाँ पहले प्यार के दास्तान  की आप के मन को छू सकी ख़ुशी हुयी 
जय श्री राधे ...आभार 
भ्रमर ५ 
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 9, 2012 at 12:35am

प्रिय योगी गुरु जी रचना को सराहने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद 

जय श्री राधे ...आभार 
भ्रमर ५ 
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 9, 2012 at 12:34am

प्रिय अशोक भाई पहले प्यार पे आप की भी मुहर लगी आनंद आया 

जय श्री राधे ...आभार 
भ्रमर ५ 
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 9, 2012 at 12:33am

आदरणीय उमाशंकर मिश्र जी रचना ये पहला पहला प्यार है की आप के मन को टटोल सकी लिखना सार्थक  रहा 

जय श्री राधे ...आभार 
भ्रमर ५ 
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 9, 2012 at 12:32am

आदरणीय लडीवाला जी आभार पहले प्यार के सम्मान में आप की कह-मुकरी भी खूब बन पड़ी 

भ्रमर ५ 

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 8, 2012 at 8:33pm

कील चुभी वो नहीं विलग "

एकदम सही फरमाया है सर जी 

हर पल है छन की योदों को तरो ताज़ा करती ये कविता 

दो प्राणों की है एक जमीं !! बहुत ही खूब कहा 

बहुत बहुत बधाई सुरेन्द्र जी बहुत गहन सार्थक प्रस्तुति हार्दिक बधाई 

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 8, 2012 at 12:14pm

बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति सुरेन्द्र सर बहुत-२ बधाई स्वीकार कीजिये

Comment by Rekha Joshi on August 8, 2012 at 10:39am

वे भूले क्या ? जब ध्यान करें

क्या याद नहीं ? हम याद करें

आधार एक छवि एक मिली

दो प्राणों की है एक जमीं !!,बहुत खूब सुरेन्द्र जी ,सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई 

Comment by Yogi Saraswat on August 8, 2012 at 9:51am

मरोड़ दो छोड़ दो वहीँ नव-पल्लव को

ये आहें सांसें लेने को शीश उभर आया है ,

पी जाओ विष हैं ठीक कहे ,

है समता ,हम भी भूल गए !!

बहुत खूब भ्रमर साब !

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