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तुम्हारे क़दमों के नीचे
सूखे हुए पत्तों की
चरमराहट ने भेज दिया
संदेसा,
छुप गई
मृगनयनी कोमल
लताओं की ओट में
अपलक निहारने लगी
तुम्हारा ओजपूर्ण लावण्य
काँधे पर तरकश
हाथ में तीर लेकर
ढूंढ रहे थे तुम अपना
शिकार
दरख़्त से
लिपटी हुई लताओं
के खिसकने की
आवाज के साथ
तुमने कुछ खिलखिलाहट
महसूस की
तुमने झाँक कर देखा
ढलते हुए सूरज की
सुर्ख लाल किरणों के
तीर उसकी आँखों को बींध गए
मानो दो दीये प्रज्ज्वलित हो उठे वहां
उस मृगनयनी आँखों में
और तुम अपलक देखते ही रह गए
समझ नहीं पाए तुम
कि शिकार तुम्हारा
दिल हो चुका था
पल में तुम्हारा दंभ
चकनाचूर हो गया
क्षणभर में एक गर्वित शिकारी
कब भिक्षुक बन बैठा
पता ही ना चला

*************

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 22, 2012 at 9:12am

अशोक कुमार रक्तेला जी बहुत बहुत  हार्दिक  आभार 

Comment by Ashok Kumar Raktale on August 22, 2012 at 12:20am

राजेश कुमारी जी

                सादर, ह्रदय परिवर्तन के पल को इतने सुन्दर शब्दों से सजा कर प्रस्तुत करने के लिये हार्दिक बधाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 17, 2012 at 1:01pm
बहुत- बहुत हार्दिक आभार रेखा जी इसी तरह स्नेह बनाए रखिये 
Comment by Rekha Joshi on August 17, 2012 at 12:59pm

समझ नहीं पाए तुम 
कि शिकार तुम्हारा 
दिल हो चुका था 
पल में तुम्हारा दंभ
चकनाचूर हो गया 
क्षणभर में एक गर्वित शिकारी
कब भिक्षुक बन बैठा
पता ही ना चला ,अति सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीया राजेश जी ,आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 17, 2012 at 9:25am

संदीप कुमार पटेल जी आपने मेरी लेखनी को मान दिया अच्छी लगी रचना आपको हार्दिक आभार 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on August 17, 2012 at 9:11am

आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर प्रणाम
बहुत सुन्दर रचना है
एक एक शब्द रचना में गहने की तरह सोभायमान हो रहा है
और फिर अंत में आपने शब्दों की बेजोड़ माला गुथी है
पता ही नहीं चल पा रहा है की इस माला की गाँठ कहाँ हैं
बधाई हो आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 17, 2012 at 8:20am

बहुत बहुत हार्दिक आभार नीरज जी आपको रचना पसंद आई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 17, 2012 at 8:19am

बहुत बहुत हार्दिक आभार अविनाश बागडे जी आपको रचना पसंद आई 

Comment by AVINASH S BAGDE on August 16, 2012 at 8:24pm

समझ नहीं पाए तुम 
कि शिकार तुम्हारा 
दिल हो चुका था 
पल में तुम्हारा दंभ
चकनाचूर हो गया 
क्षणभर में एक गर्वित शिकारी
कब भिक्षुक बन बैठा
पता ही ना चला...wah..kya shabd-rachana hai...Rajesh kumari mam.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 16, 2012 at 6:43pm

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर जी हार्दिक आभार आपको रचना पसंद आई 

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