ससुर जी ये कब का, तूने बैर है निकाला,
काहे अपनी बेटी को, सर पे मेरे डाला |
लड़की है वो या फिर, बकबक की टोकरी,
साल भर हुआ नहीं, सरका है दिवाला |
पाक कला ज्ञात नहीं, देर जगे बात नहीं,
फिल्म देखे रात नहीं, अटका है निवाला |
मान गया रूप बड़ा, गुण भी कोई चीज है,
बोले बिना जान सके, क्या कहे घरवाला ||
Comment
लड़की है वो या फिर, बकबक की टोकरी,
साल भर हुआ नहीं, सरका है दिवाला |
बहुत बढ़िया गौरव जी.
आपका हार्दिक आभार आदरणीय मित्रवर राजेश कुमार झा जी......
आदरणीया रेखा जी........रचना को पसंद करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.........
आदरणीय मित्र संदीप जी........आपकी प्रेमपूर्ण प्रतिक्रिया तो सदैव उत्साहवर्धक होती है.......हार्दिक आभार........
आदरणीय सतीश मापतपुरी सर, आपने जिस मुक्तकंठ से उत्साहवर्धन किया उसके लिए आपका आभारी हूँ........स्नेह बनाये रखियेगा......
मजेदार रचना और तिसपर मनहरण घनाक्षरी, मन हर ले गई आपकी रचना
पाक कला ज्ञात नहीं, देर जगे बात नहीं,
फिल्म देखे रात नहीं, अटका है निवाला |,बहुत खूब गौरव जी ,बधाई
बहुत सुन्दर हास्य रस में भिगोती हुई छंद रचना के लिए बधाई आदरणीय
सच कहें तो गौरव जी आपने सबकी कह डाला है .... लख -लख मुबारकां जी
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