इस तरह दूर वो आजकल हो गई।
जैसे इस शहर की बिजली गुल हो गई।
देह तेरी किसी बेल जैसी लगे,
आई बरसात धुलकर नवल हो गई।
इस तरह रास्ते और लम्बे हुये,
जैसे के मेरी लम्बी ग़ज़ल हो गई।
बेवफा क्या बताऊँ तेरी बाट में,
प्यार की बर्फ पिघली,और जल हो गई।
आम की भोर पर भंवरे जो आ गये
मुस्कुराहट मधुरता का फल हो गई।
एक बरसात आई तुम्हारी तरह,
और जोहड में खिल कर कमल हो गई।।
सूबे सिंह सुजान
Comment
SANDEEP KUMAR PATEL........पटेल साहब शुक्रिया....
बहुत खूब, सूबे साहब अच्छी ग़ज़ल कही है ...
एक बरसात आई तुम्हारी तरह,
और जोहड में खिल कर कमल हो गई।।
वाह वा क्या कहने ...
satish mapatpuri...जी आपकी राय जान कर मन को तसल्ली हुई की कुछ लिख तो पाया हूँ।
धन्यवाद।
Naval Kishor Soni.....जी बहुत शुक्रिया आपकी प्रतिक्रिया अमूल्य है।
इस तरह दूर वो आजकल हो गई।
जैसे इस शहर की बिजली गुल हो गई।
देह तेरी किसी बेल जैसी लगे,
आई बरसात धुलकर नवल हो गई--------------wah kya bat hai .
बड़ी मीठी गज़ल है, बधाई
आम की भोर पर भंवरे जो आ गये
मुस्कुराहट मधुरता का फल हो गई।
एक बरसात आई तुम्हारी तरह,
और जोहड में खिल कर कमल हो गई।।अति सुंदर अभिव्यक्ति सूबे सिंह जी ,बधाई
बेवफा क्या बताऊँ तेरी बाट में,
प्यार की बर्फ पिघली,और जल हो गई।
बहुत खूब साहब
देह तेरी किसी बेल जैसी लगे,
आई बरसात धुलकर नवल हो गई।
बहुत खूब सुजान साहेब ... बधाई हो
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