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मर्यादित आचरण ही,सद्चरित्र व्यवहार,
सद्चरित्र व्यवहार से,हो दर्शन करतार //

कर दर्शन करतार के, सदाचार सोपान,
सदाचार सोपान से, होगा बेडा पार //

होगा बेडा पार तब,परहित तेरे कर्म,
परहित तेरे कर्म हो, उसेही मनो धर्म //

पुरुषोत्तमश्री राम का, है मर्यादित चरित्र,
अनुशासित नित्कर्म, है आचरण पवित्र //

जीवन दर्शन तत्व को,कृष्ण ही समझाय
युक्ति संगत करम को, कर्मयोगी बतलाय //

-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला,जयपुर

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Comment by Ashok Kumar Raktale on September 1, 2012 at 8:24am

आदरणीय

          सादर नमस्कार, आपके जोश, उत्साह और लगन को नमन.

Comment by Rekha Joshi on August 31, 2012 at 9:13pm

बहुत बढ़िया दोहे रचे है आपने आदरणीय लक्ष्मण जी ,बधाई 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 31, 2012 at 7:26pm
हार्दिक आभार राजेश कुमारी जी, आप उत्साहित करते रहेंगे तो 
मेरा होंसला मुकाम की ओर ले ही जाएगा, धन्यवाद |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 31, 2012 at 7:20pm

लक्ष्मण जी बहुत ही सुन्दर दोहे रचे हैं बाकी विन्ध्येश्वरी   जी ने कह दिया 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 31, 2012 at 7:11pm
आदरणीय विन्द्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठीजी, आपका हार्दिक आभार, मै आप लोगो से ही  
प्रेरणा प्राप्त कर दोहे लिखने का साहस कर पा रहा हूँ | उत्साह बढ़ाने हेतु धन्यवाद 
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 31, 2012 at 7:03pm
आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी आपका सत्प्रयास रंग ला रहा है,कहीं कहीं मात्रायें भाग रहीं कृपया उन्हें देख लीजिए।
दोहों की रचना का उत्तम प्रयास है सादर बधाई।

कृपया ध्यान दे...

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