"जिन्दगी का कोरा सच "
सच
जिन्दगी का
कभी ग़ज़ल बना
कभी नज्म
कभी रुबाइयाँ
लिखते रहे
गुनगुनाते रहे
सुनते रहे
सुनाते रहे
क्या क्या न लिखा
धुप छाँव
राह, मंजिल
पड़ाव
गुल, गुलशन
खार
कभी जिन्दगी
इक भार
दोस्त, यार
फिर दुनिया में
भ्रष्टाचार
हाहाकार
कभी सम्मान
कभी तिरस्कार
कभी लगती रही
ये व्यापार
खुद दुकानदार
कभी नफरत
तो कभी प्यार
बार बार
लेकिन
हर बार
कलम रुकी
सच में
हाँ सच में
जो कोरा है
हाँ मौत
मौत है
जिन्दगी का कोरा सच
जो कभी न लिख पाया
वो आज भी कोरा है
संदीप पटेल "दीप"
Comment
ज़िन्दगी के बारे में बहुत कुछ लिखा गया, पर मौत ज़िन्दगी का कोरा सच है जो कभी न लिख पाया...... बहुत सुन्दर चिंतन मनन को दर्शाती रचना. हार्दिक बधाई संदीप पटेल जी.
आदरणीय अशोक जी सादर प्रणाम
आपकी सराहना मिली इस रचना को लेखन कर्म सफल हुआ
आपका ये स्नेह और सहयोग यूँ ही अनुज पर बनाये रखिये
आपका बहुत बहुत शुक्रिया सहित सादर आभार
जींदगी को कई रूपों में ढाल कर ले जाति इस रचना के लिए बधाई स्वीकारें आ. संदीप जी.
आदरणीय भाई संदीप जी सादर नमस्कार
आपकी प्रतिक्रिया ने मेरी इस अधपकी रचना को भी पूर्ण कर दिया है
हार्दिक प्रसन्नता हुई आपकी सराहना मिली मुझे
अपना ये स्नेह और सहयोग यूँ ही बनाये रखिये
आपका बहुत बहुत शुक्रिया सहित सादर आभार
जिन्दगी का कोरा सच
जो कभी न लिख पाया
वो आज भी कोरा है
वाह भाई दीप जी शुरू से ले कर अंत तक सरपट पढ़ता ही चला गया! प्रवाहमयी रचना पर हार्दिक बधाई!
आदरणीय अम्बरीश सर जी सादर प्रणाम
आपने रचना को सराहा और इसका रसास्वादन किया
इसके लिए मैं आपका अनुज नित आभारी हूँ
अपना ये स्नेह मुझ पर यूँ ही बनाये रखिये
ह्रदय से धन्यवाद आपका
//हाँ मौत
मौत है
जिन्दगी का कोरा सच
जो कभी न लिख पाया
वो आज भी कोरा है //
उत्तम प्रवाह से युक्त इस शानदार रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें भाई संदीप जी !
आदरणीय नीरज जी सादर नमस्कार
आपको लेखन पसंद आया और आपकी सराहना मिली
अपना स्नेह और सहयोग यूँ ही बनाये रखिये
आपका बहुत बहुत धन्यवाद सहित सादर आभार
आदरणीय गणेश सर जी सादर प्रणाम
आपकी इस अनुपम हर्ष से भरी प्रतिक्रिया मिली मन में एक उत्साह जाग गया
अपना ये स्नेह मुझ पर यूँ ही बनाये रखिये
आपका बहुत बहुत शुक्रिया सहित सादर आभार
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