For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"निवाले"

रामू के
विदीर्ण वस्त्रों में छुपी 
कसमसाहट भरी मुस्कान
एहसास कराती है
खुश रहना कितना जरुरी है

दिन-रात
कचरा बीन बीन के 
उससे दो चार निवाले निकाल लेना
कुछ फटी चिथी पन्नियों से 
खुद के लिए और छोटी बहन के लिए भी
एहसास कराता है
कर्मयोगी होने का

रात उसके बगल में सोती है
कभी दायें करवट
कभी बाएं करवट
खुले आसमान के नीचे
उसका जबरन आँखों को मूंदे
भूख को मात देना
परिभाषित करता है आज़ादी
स्वयं की

चढ़ जाता है चलती रेल में
साफ़ करता है
बड़ी सफाई के साथ
फिर मांगता है मजूरी
जो की सब दें नहीं है जरुरी
एहसास कराता है
गरीब और अमीर होने का भेद
दिल से

एक का सिक्का
कभी दो का
मुस्कुरा उठता है
कभी कोई पांच का सिक्का दे दे गर
दिल से देता है
करोडपति होने की दुआ
जो होती है खरबों की
मुफ्त मिलती है न
एहसास ही नहीं होता है
की उसकी मुस्कान
की कोई कीमत नहीं
उस पांच के सिक्के के आगे

हर वक़्त
बस जतन
दो चार निवालों का ही
वही है होली दिवाली ईद
कुछ दिन ही रहते हैं
साफ़ कपडे
जो मिलते हैं
कभी कभी
किसी किसी की उतरन से
फिर क्या है
वही हो गया बड़ा दिन

क्या उनकी आँखें
डबडबाती नहीं है
क्या संवेदना शून्य है वो
नहीं इंसान में इतनी शक्ति कहाँ है
वो तो हो चला है ऐसा
क्यूंकि जानता है
आँखों की नमी से
नहीं मिलते हैं दो चार निवाले
और न ही हिम्मत
दिन रात काम करने की
ये तो काम चोरों का काम है
दुखों की परिभाषा
वो नहीं जानता
वो तो खुशियाँ ढूंढता है
कचरे के ढेर में

उसे आइना दिखाने की
हिम्मत न थी मुझमे
वो तो खुद आइना सा था
समाज का
जहाँ दिख रही थी
असमानता अपनों में
अपनों की

संदीप पटेल "दीप"

Views: 444

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 3, 2012 at 12:02pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर प्रणाम
आपको लेखन पसंद आया और आपकी अनमोल प्रतिक्रिया प्राप्त हुई
इसके लिए मैं आपका हिरदय से आभारी हूँ
स्नेह यूँ ही अनुज पर बनाये रखिये
बहुत बहुत धन्यवाद आपका

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 3, 2012 at 12:00pm

आदरणीय सौरभ सर जी सादर प्रणाम
आपकी से मिली सराहना से मन को इक तसल्ली सी हुई की हाँ कुछ तो अच्छा लिखा ही होगा
अपना ये स्नेह और मार्दर्शन यूँ ही बनाये रखिये
आपका सादर आभार

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 3, 2012 at 11:59am

आदरणीय सतीश भाई सादर
आपको लेखन पसंद आया और आपकी सराहना मिली
इस अनुपम स्नेह हेतु आपका बहुत बहुत आभार

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 3, 2012 at 11:58am

आदरणीय लक्षमण जी सादर प्रणाम
आपको लेखन पसंद आया रचना में दिया सन्देश मन को भाया
रचना सफल हुई
आपका बहुत बहुत धन्यवाद सहित सादर आभार

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 3, 2012 at 11:56am

आदरणीया डॉ. प्राची जी सादर नमन
आपको लेखन पसंद आया और आपकी सरहना मुझे मिली मन उत्साहित हो गया
अपने ये स्नेह यूँ ही अनुज पर बनाये रखिये
सादर आभार आपका


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 2, 2012 at 7:16pm

एक आज की   सामाजिक घ्रणित सच्चाई को उकेरती रचना ---लाजबाब 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 2, 2012 at 3:07pm

दैनिक जीवन में पसरी असमानता श्रम-संस्कार की मान्यता को कैसे अनर्थ दे रही है उसे यथोचित स्वर दिया है आपने.

प्रयासरत रहें.  हार्दिक शुभकामनाएँ.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 1, 2012 at 6:42pm

वो तो खुशियाँ दूंढता है कचरे के ढेर में, वही व्यक्ति खुश रह सकता है,जो दो चार निवाले का जतन कर खुश रहना जानता है 

अच्छा सन्देश देती रचना लगी, बधाई श्री संदीप कुमार पटेल जी  

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 1, 2012 at 6:29pm
अपनी संवेदना को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं... 
खुले आसमान के नीचे
उसका जबरन आँखों को मूंदे
भूख को मात देना
परिभाषित करता है आज़ादी
स्वयं की....
भाव चित्र को शब्द प्रवाह के साथ मानस पटल पर उकेर देने की कला में सफल  होती इस रचना हेतु हार्दिक बधाई आ. संदीप पटेल जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service