रात थकती बुझ रही रोशन दिये की खोज में
जल रहे हैं जाम खाली साकिये की खोज में
लिख दिए किरदार सारे पड़ गये हैं नाम पर
है अधूरी ये कहानी बाकिये की खोज में
हार कर इंसान खुद से आदमीयत खोजता
जिन्दगी बेचैन फिरती हाशिये की खोज में
क्या रदीफो-कह्न इसकी क्या रवायत बह्र की
खूब भटकी यों ग़ज़ल भी काफ़िये की खोज में
"दीप" खूँ स्याही बनाकर जिसमे लिक्खा हाले दिल
चिट्ठियाँ बिखरी पड़ी वो डाकिये की खोज में
संदीप पटेल "दीप"
Comment
सच कहूँ तो वाकई काफियों की खोज आसान न रही होगी, इस ग़ज़ल को कई बार पढ़ी, अच्छी ग़ज़ल कही है संदीप जी, बधाई हो |
आदरणीया रेखा जी
ग़ज़ल को सराहने हेतु आपका बहुत बहुत आभार
स्नेह अनुज पर यूँ ही बनाये रखिये
उम्दा गजल संदीप जी ,बधाई
आदरणीय कुमार गौरव अजीतेन्दु जी सादर प्रणाम
आपको ग़ज़ल पसंद आई और आपकी दाद मिली
इसके लिए मैं आपका आभारी हूँ
ह्रदय की गहराइयों से आपका शुक्रिया
सुन्दर रचना मित्रवर.......बधाई..........
आदरणीय वीनस जी सादर प्रणाम
आपकी दाद पा कर सच कहूँ दिल आसमान को छू लेता है
और ऐसा लगता है की क्या लिखा है मैंने वाह वाह वाह खुद को वाह कहे बिना रोक नहीं पाता हूँ मैं
लेकिन आपसे मुझे और सहयोग की अभिलाषा है कृपया कर मार्गदर्शन किया कीजिये
हम नौसीखिए आप से सीख सीख के ही इस पायदान में पहुंचे हैं की आपकी तारीफ मिल जाती है
कृपया इस स्नेह को एक गुरु के भांति सीख के साथ और लुटाइए ताकि हम कुछ हाशिल कर सकें
आपका बहुत बहुत शुक्रिया और सादर आभार
आदरणीय सौरभ सर जी सादर प्रणाम
सर्वप्रथम तो मैं आज के इस पावन दिवस में आपसे चरणस्पर्श कर आशीर्वाद चाहता हूँ फिर
आपको शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं देता हूँ
आपकी इन अनमोल बेशकीमती प्रतिक्रियाओं के चलते ही मैं अपने लेखन में सुधार कर पाया हूँ
गुरदेव स्नेह यूँ ही बनाये रखिये मुझ पर
आपका बहुत बहुत धन्यवाद और सादर आभार सहित सुधार की परंपरा को आगे बढाते हुए कुछ सुधार किये हैं
शायद आपको सुधार अच्छा लगेगा
रात काली जल रही रोशन दिये की खोज में
जल रहे हैं जाम खाली साकिये की खोज में
लिख दिए किरदार सारे रख दिए हैं नाम भी
पर अधूरी है कहानी बाकिये की खोज में
हार कर इंसान खुद से आदमीयत खोजता
जिन्दगी बेचैन फिरती हाशिये की खोज में
क्या रदीफो-कह्न इसकी क्या रवायत बह्र की
खूब भटकी है ग़ज़ल ये काफ़िये की खोज में
"दीप" खूँ स्याही बनाकर जिसमे लिक्खा हाले दिल
चिट्ठियाँ बिखरी पड़ी वो डाकिये की खोज में
संदीप पटेल "दीप"
आदरणीय भाई विन्ध्येश्वरी जी सादर
आपको ग़ज़ल पसंद आई कहन सार्थक हो गयी है
ये स्नेह इसी तरह बनाये रखिये
आपका तहे दिल से शुक्रिया सहित सादर आभार
बहुत खूब संदीप जी हमेशा की तरह बेहतरीन कहा है :))))))))
(लाजवाब होने की गुंजाईश है)
संदीपभाई जी, आपकी ग़ज़ल में बह्र का बढिया निर्वहन हुआ है. यों, ग़ज़ल थोड़ी और मशक्कत की मांग करती है. परन्तु, आप जिस शिद्दत से संलग्न हैं आपकी कलम में निखार आता जा रहा है.
मतले का उला संयत किया होता तो और खूब होता.
क्या रदीफ़ो कह्न इसकी.. .. इस शेर में तकाबुलेरदीफ़ का दोष होगया है.
लेकिन, दिल बल्लियों उछल रहा है आपके मक्ते पर. वाह-वाह-वाह ! आपकी मेहनत सही कहिये परचम बनी ऊँचे-ऊँचे फहर रही है. क्या ही सुन्दर भाव, क्या ही सुन्दर कहन.. वाह, क्या ही बेहतर शेर !! आपके मक्ते ने मोह लिया, भाईजी. यह आपके कई ग़ज़लों पर भारी है. बस, हृदय की गहराइयों में सीधा उतर गया. खूब-खूब बधाई स्वीकार करें.
हार्दिक शुभकामनाएँ.. .
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