"जबाब नहीं है ख़ामोशी "
जबाब नहीं है ख़ामोशी
सब जानते हैं
इसमें तो छुपा होता है
गलतियाँ स्वीकारने का हाँ
कसमसाहट भरी वो हाँ
जो हाँ कहने पर
जुबान शर्मशार हुई जाती है
फिर भी
हज़ारों सवालों का जबाब है
मेरी ख़ामोशी
क्यूंकि मैं शर्मशार हूँ
हाँ यही सच है
गलत तो कुछ भी नहीं
सब सच है
चाहे तो आग लगा के देख लो
मेरी हर शै में
जलने के बाद
जो बचेगा वो सच है
भले काला ही क्यूँ न हो
उसमे छुपा होगा
मेरी खामोशी का सच
काला सा
चाहो तो सफाह पे लिख लेना
दीवार पे पोत लेना
या फिर
एक बार फिर भड़का लेना शोले
उस काले बचे हुए कोयले से
मैं रोज देख रहा हूँ
इस समय
वो विज्ञापन
जिसमे आता है
एक हफ्ते में कैसे पायें
बेदाग़ गोरापन
कैसे बचाएं
उजाले के लिए बिजली
क्यूंकि अंधेरों को इसकी जरुरत नहीं
वो तो दियासलाई से काम चला लेते हैं
और वो भी नहीं मिले
तो जुगनू ढूंढ लेते हैं
पर अब जुगनू कहाँ ढूंढें
जंगल तो काट दिए
बेचारे अँधेरे
गुमराह हो के भटकने लगे
जुगनुओं की तलाश में
छी शर्मशार हूँ में
खामोशी तोड़ भी तो नहीं सकता
सुबह उठ जाता हूँ
दांत चीखते हैं
कोलगेट कर लो
कोलगेट कर लो
पर में करता हूँ
दन्त मंजन
कोयले से बना हुआ
कम से कम मसूड़े मजबूत हो जाते हैं
कीमिया नमक मिला लेता हूँ
उसमे जनता का
फिर सोचता हूँ
नमक हराम हूँ मैं
क्या जबाब दूं
ख़ामोशी ही ठीक है
हजारों जबाबों में गुनाह कुबूलना
आसाँ नहीं है
इसीलिए खामोशी भरी हाँ बेहतर है
हर शै काली हो जाती है
चाहे वो सोना ही क्यूँ न हो
जब होती है उसकी पहचान
जल कर , जलाकर
लकड़ी के सूखे ठूंठ में
वैसे भी सब्ज पत्ते कब आये हैं
कब कंगूरे में
कोपलें सजी हैं
हाँ दिवाली के दिए जरुर जले हैं
तेल के
दर दर रौशनी फैलाते
लेकिन मैं जला हूँ
तो कोयला बन गया
आसमान पे बादल हैं
वो भी काले
सफ़ेद बादलों से सीखा था
ललचा के चले जाना
लेकिन वो भी
जबाब देना न सिखा सके
और गम हो गए
नीले समन्दर की गहराई में
मोती की तलाश तो थी
पर निकल आया कोयला
जानता हूँ
जबाब नहीं है ख़ामोशी
संदीप पटेल "दीप"
Comment
आदरणीय योगी जी सादर प्रणाम
आपको अभिव्यक्ति पसंद आई और आपकी सराहना मिली
इसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद सहित सादर आभार
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
दर दर रौशनी फैलाते
लेकिन मैं जला हूँ
तो कोयला बन गया
आसमान पे बादल हैं
वो भी काले
सफ़ेद बादलों से सीखा था
ललचा के चले जाना
लेकिन वो भी
जबाब देना न सिखा सके
और गम हो गए
नीले समन्दर की गहराई में
मोती की तलाश तो थी
पर निकल आया कोयला
जानता हूँ
जबाब नहीं है ख़ामोशी
क्या बात है संदीप पटेल साब ! बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति और खूबसूरत अल्फाज़
आदरणीय गणेश सर जी सादर प्रणाम
आपको लेखन पसंद आया मेरा लिखना सफल हो गया
अपना स्नेह और सहयोग अनुज पर यूँ ही बनाये रखिये
आपका बहुत बहुत धन्यवाद और सादर आभार
सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ती रचना जो कड़ी दर कड़ी जुडी हुई है, बहुत ही अच्छी बन पड़ी है, बधाई संदीप जी |
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