सौरभ जी से चर्चा के पश्चात जो परिवर्तन किये हैं उन्हें प्रस्तुत कर रही हूँ
परिचर्चा के बिंदु सुरक्षित रह सके इस हेतु पूर्व की पंक्तियों को भी डिलीट नहीं किया है जिससे नयी पंक्तियाँ नीले text में हैं
गीत मे तू मीत मधुरिम नेह के आखर मिला
प्रीत के मुकुलित सुमन हो भाव मे भास्वर* मिला -----*सूर्य
हो सकल यह विश्व ही जिसके लिए परिवार सम
नीर मे उसके नयन के स्नेह का सागर मिला
पी लिया जिसने हलाहल बन के मीरा की तरह
ऐसी भक्ति से स्वयं फिर आ के वो गिरधर मिला
पी लिया जिसने हलाहल बन के मीरा बावरी
प्रेम की ऐसी ऊँचाई पर स्वयं ईश्वर मिला
है सबल या है निबल मत सोच रेखा भाग्य की
लक्ष्य बस उसको मिला जो कर्म मे तत्पर मिला
है सबल या है निबल मत सोच रेखा भाग्य की
लक्ष्य तो वो भेदता ,जो कर्म मे तत्पर मिला
क्या गज़ल क्या गीत क्यों इस बात पर चर्चा करें
जो हरें पीड़ा ह्रदय की तू वही अक्षर मिला
ढूंढ के थक जाएगा काबा ओ काशी एक दिन
वो है भीतर स्वयं के बाहर कहाँ ईश्वर मिला
टूटते जिन स्वप्न को दरकार है आधार की
आ तू उनकी नींव मे विश्वास के पत्थर मिला
कैद मे थे वक्त की जो कामनाओं के विहग
उड़ चले जैसे ही बंधक आस को अम्बर मिला
Comment
प्रिय प्राची ,
आपकी इस स्नेह पूर्ण प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद और शुभकामनाएं
//है सबल या है निबल मत सोच रेखा भाग्य की
लक्ष्य बस उसको मिला जो कर्म मे तत्पर मिला
ढूंढ के थक जाएगा काबा ओ काशी एक दिन
वो है भीतर स्वयं के बाहर कहाँ ईश्वर मिला
टूटते जिन स्वप्न को दरकार है आधार की
आ तू उनकी नींव मे विश्वास के पत्थर मिला
कैद मे थे वक्त की जो कामनाओं के विहग
उड़ चले जैसे ही बंधक आस को अम्बर मिला//
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सत्य की राहों में कंटक चल पड़ी पर यह ग़ज़ल.
भाव उन्नत शिल्प सुन्दर कथ्य भी बेहतर मिला ...........बहुत-बहुत हार्दिक बधाई आदरेया सीमाजी ....सादर
क्या गज़ल क्या गीत क्यों इस बात पर चर्चा करें
जो हरें पीड़ा ह्रदय की तू वही अक्षर मिला
आदरणीया सीमा जी,
भावनाओं का विहंगम सम्प्रेषण! अत्यंत सुन्दर! साभार,
आदरणीया सीमा जी,
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