तुम कंचन हो,
मै कालिख हूँ!
तुम पारस, मै
कंकड़ इक हूँ!
तुम सरिता हो,
मै कूप रहा!
तुम रूपा, इत
ना रूप रहा!
जो मानव नहीं है उसको, देव की पांत है असंभव!
है तुलना न अपनी कोई, मिलन की बात है असंभव!
तुम ज्वाला हो,
मै चिंगारी!
मै टिमटिम, तुम
आभाकारी!
तुम चंदा हो,
मै हूँ जुगनू!
तुम तेजपुंज,
मै भुकभुक हूँ!
बना हूँ धूप के लिए मै, छांव की रात है असंभव!
है तुलना न अपनी कोई, मिलन की बात है असंभव!
तुम जो भी हो,
मै जो भी हूँ!
कुछ और कहो,
तो वो भी हूँ!
तुम सबकुछ हो,
मै कुछ भी नहीं!
पर दिल की है,
ये बात सही!
ये दिल चाहता है तुमको, जानता साथ है असंभव!
है तुलना न अपनी कोई, मिलन की बात है असंभव!
है प्यार तुम्हे
करता ये दिल!
पर कहने में,
डरता ये दिल!
क्या पता कि तुम
अपनाओगी!
या सदा लिए
ठुकराओगी!
अपने मिलन की खातिर ये, बने हालात हैं असंभव!
है तुलना न अपनी कोई, मिलन की बात है असंभव!
तुम दिल में हो,
ये बहुत मिला!
ना गम मुझको,
खुश हूँ न गिला!
बस देख तुम्हे,
मै रह लूँगा!
दूरी ताउम्र,
मै सह लूँगा!
पर भूल जाऊं तुमको, ये भी तो नहीं है संभव!
है तुलना न अपनी कोई, मिलन की बात है असंभव!
- पियुष द्विवेदी ‘भारत’
Comment
भाई मेरे मैं कहने ही जा रहा था कि नाम का कॉपी-पेस्ट करना ’फेसबुकिया इश्टाइल’ है. मगर चुप रह गया क्योंकि इस मंच पर अक्सर सदस्य फेसबुक पर भी हैं. अतः इतनी बातें सभी जानते हैं. मगर यहाँ इस नोटिफिकेशन या मेंशन की कोई समस्या नहीं है. सभी से अपेक्षा रहती है कि वे अपने पोस्ट और थ्रेड को खँगालते रहें. क्योंकि यह ’सीखने-सिखाने’ का / के लिये मंच है, भाई. तत्परता उन्हें ही दिखानी होगी जो सीखना चाहते हैं.
सधन्यवाद
जी, अगर ऐसा है, तो ठीक, ध्यान रखेंगे! पर कापी-पेस्ट का लाभ है कि व्यक्ति-विशेष को पता चल जाता है कि उन्हें प्रत्युत्तर किया गया है! इसी कार्य को फेसबुक, ट्विटर पर मेंशन नामक एक सुविधा से सूचित किया जाता है! बस, यही उद्देश्य था! फिर भी, अगर यहाँ ये गलत है, तो ध्यान रखेंगे!
सहमत हूँ आदरणीय सौरभ जी ! यही बेहतर रहेगा ! सादर
//अम्बरीष भाई के बंद को वैकल्पिक रूप से रखा है!//
आप यदि इससे बेहतर सुधार कर सके तो हम आपके अत्यंत आभारी होंगें ! सस्नेह
अब हम सभी --जिनने इस रचना पर अबतक प्रतिक्रियाएँ दे दी हैं-- आगे अपनी प्रतिक्रियाएँ बंद करें. पियूषजी को अबतक अवश्य भान हो गया होगा कि वे किनसे क्या सुन-समझ रहे हैं. सीमाजी से लेकर आदरणीय अम्बरीष जी तक ने इस वर्कशॉप में हिस्सा लेकर महती योगदान किया है. पियूषजी की अगली रचना की प्रतीक्षा है.
मित्र पीयूष जी,
दी गयी प्रतिक्रिया में सम्मानित सदस्यों के नाम को कापी- पेस्ट करने के बजाय इस मंच पर उनके नाम सम्मान के साथ टाइप करने की परम्परा है !
जी उचित है, अगर ये गलत है, तो इसे सुधारने का प्रयास करेंगे! अम्बरीष भाई के बंद को वैकल्पिक रूप से रखा है!
जी, मार्गदर्शन हेतु धन्यवाद........!
भाई आपकी रचना को हम सभी समझ रहे है, कहाँ कहाँ आप ने किससे तुक बैठाया है वो भी समझ रहे हैं, आपने जो उदाहरण दिया है उसको आप खुद समझ नहीं पा रहे हैं, यदि समझते तो कहते नहीं, जो तुक की समस्या आपकी रचना में बताई गई है वो १०० प्रतिशत सही है, बहुत के साथ खुश की तुकबंदी नहीं हो सकती |
इस रचना के अन्य बंद में किसी ने कुछ नहीं कहा क्योंकि वहां आपने अक्षर अथवा मात्रा के साथ तुक मिलाया है किन्तु यहाँ तुक नहीं मिल रहा | यदि आपका यह कहना है कि लघु गुरु के अनुसार लघु से तुक मिलाया है तो ऐसा नहीं होता है इसको आप समझ लें |
पीयूष जी.
//स्वयं तो क्षमा के साथ कहूँगा कि बंद की अंतिम दोनों लाईनों में एक ही बात के विषय में दो नकार हैं, जो थोड़े अटपटे प्रतीत हो रहे हैं!//
गम : दुःख
गिला : शिकायत
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