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कई मोड़ हैं

मेरी हथेली पर

हांफते हुए

 

ख्‍वाब में डूबे

कुछ चश्‍में भी तो हैं

कांपते हुए

 

नीले पड़ाव

धुंध में फिसलते ...

सैलाब भी हैं

 

सुर्ख परियां

वजू करते हाथ

हुबाब भी हैं

 

कम भी नहीं

इतनी खामोशियां

जीने के लिए

 

बेदर्द जख्‍म

काफी है इतना ही

अभी के लिए

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Comment

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Comment by Yogi Saraswat on September 13, 2012 at 11:07am

कम भी नहीं

इतनी खामोशियां

जीने के लिए

बढ़िया , सुन्दर शब्द झा साब

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 13, 2012 at 10:33am

बहुत सुन्दर प्रयास किया है आपने
बधाई स्वीकार कीजिये आदरणीय

Comment by Albela Khatri on September 12, 2012 at 10:16pm

वाह........
अच्छा लगा


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 12, 2012 at 8:32pm

राजेश जी, आपने अच्छा प्रयास किया है. प्रयासरत रहें, धीरे-धीरे हाइकू की विधा स्पष्ट होती जायेगी. आप इस मंच पर प्रस्तुत हुए अन्य रचनाकारों के हाइकू भी अवश्य पढ़ें जिनपर व्यापक बहस हुई है. आदरणीय अम्बरीष भाई ने भी इसी तरफ़ इशारा किया है.

सधन्यवाद

Comment by Ashok Kumar Raktale on September 12, 2012 at 7:38pm

बहुत बढ़िया हाइकु आ. राजेश जी बधाई.

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 12, 2012 at 4:09pm

हाइकू रचने के इस सद्प्रयास हेतु बधाई ! निकट भविष्य में आपका सतत अध्ययन इन्हें और भी पुष्ट बनायेगा !

कृपया ध्यान दे...

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