एक मेरी कल्पना , एक मेरी अर्चना
हिंदी में ही स्वर सजें, हिंदी में ही गर्जना
माथे की बिंदी भी कही क्यूँ , ढूँढती अस्तित्व अपना
क्यूँ नहीं हमने निभाया माँ , भाष्य का दायित्व अपना
बहके हुए है हम सदा से , भाषा इंगलिस्तान में
बोलने में क्यूँ लाज आये, हिंदी हिंदुस्तान में
राष्ट्र के माथे की बिंदी , क्यूँ सभी हम नोचते
क्यों नहीं ये प्रण भी लेते , हिंदी में ही बोलते
Comment
आपकी भावना को शब्द मिले हैं, बधाई !
बहुत ही सुन्दर वर्णन किया है मात्रभाषा का. हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाये
खुबसूरत भावों से सुसज्जित रचना, हिंदी दिवस की बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें |
अच्छी रचना बधाई श्री आशीष श्रीवास्तव भाई
राष्ट्र के माथे की बिंदी , क्यूँ सभी हम नोचते
क्यों नहीं ये प्रण भी लेते , हिंदी में ही बोलते,बढ़िया रचना ,बधाई ,हिंदी दिवस पर शुभकामनाएं ,आशीष जी
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