लघु कथा : विरोध
यह तकरीबन रोज़ का ही किस्सा था कि कालोनी के बच्चे भोली भाली तूलिका का खिलौना छीन लेते और वह रोते-रोते घर आती और हर बार उसकी मम्मी समझा बुझाकर उसे शांत करा देती | आज शाम उसके मम्मी पापा बरामदे में बैठे चाय पी रहे थे, तभी तूलिका भागी भागी घर आई और उसके पीछे रोते हुए राहुल को लेकर उसकी मम्मी भी आ पहुंची |
"देखिए बहन जी, आपकी बेटी ने मेरे राहुल को कितना मारा" राहुल के गाल पर पड़े चांटे का निशान दिखाते हुये राहुल की मम्मी बोलीं |
"तूलिका इधर आओ, तुमने राहुल को क्यों मारा"
"मम्मी पहले राहुल ने ही मेरी गुड़िया छीनी थी, तभी मैंने उसे मारा"
"बहन जी, तूलिका अभी बच्ची है, मैं समझा दूंगी, आइन्दा वो ऐसा नहीं करेगी"
राहुल की मम्मी भुनभुनाते हुए चली गई |
लेकिन न जाने क्यों तूलिका के डैडी मंद मंद मुस्कुरा रहे थे, अत: तूलिका की मम्मी पूछ ही बैठी,
"क्या बात है जी, आप बिटिया की इस हरकत से बहुत खुश नज़र आ रहे हैं ? "सच कहा जी, मैं आज वाक़ई बहुत खुश हूँ, आज हमारी बिटिया विरोध करना सीख गई है |"
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Comment
इस उत्साहवर्धक टिप्पणी हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीया रेखा जोशी जी |
सराहना हेतु आभार आदरणीय प्रदीप कुशवाहा जी |
सार्थक-सन्देश ...... अन्याय का विरोध ...बधाई आदरणीय बागी जी |
आदरणीय बागी जी
हमारी बिटिया विरोध करना सीख गई है |"... सार्थक सन्देश . कम शब्दों में. सर जी
बधाई.
बहुत बहुत आभार आदरणीया सीमा अग्रवाल जी, आपकी टिप्पणी मुझे सबल प्रदान करती है , बहुत बहुत आभार आदरणीया |
आदरणीया डॉ प्राची जी, यदि कोई लेखक जो कुछ सोच कर लिखता है और वही सोच पाठक तक पहुचता हो तो ऐसा लगता है कि उद्देश्य सफल हुआ | आपकी टिप्पणी मुझे संतृप्त करती है और प्रोत्साहित भी | लघु कथा कि आत्मा को समझने और सराहने हेतु बहुत बहुत आभार |
बच्चों को सांसारिकता के कई पाठ स्वतः ही सीखने होते हैं.... यही से उनका व्यक्तित्व निर्माण होता है.
आदरणीया विनीता शुक्ला जी, लघुकथा को सराहने हेतु बहुत बहुत आभार |
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