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रचना पसंद कर अभिव्यक्त भावों को सराहने के लिए हार्दिक आभार श्री नादिर खान भाई
नारी के ही प्रेम से, होते सब दुख दूर,
आपकी दोहे "अमृत ही बरसे" पर टिपण्णी मुझे याद है | दरअसल दोहे गुदगुदाने का अभ्यास करना ही होगा,जिसका दुहरा लाभ मिलेगा, (याद भी होंगे और लयात्मकता कभी आभास हो ककेगा ) उत्साह वर्धन एवं आपका सहयोगात्मक सोच के प्रति मै नतमस्तक हूँ आदरणीय सीमा अग्रवाल जी, हार्दिक धन्यवाद |
सौरभ जी आपकी काव्य के प्रति श्रद्धा और चिंता को देख कर बहुत उत्साह मिलता है एक बार मैंने लक्षमण जी से कहा था "छंद में गेयता प्राथमिक गुण है यदि हर छंद को कई बार सही लय के साथ गुनगुनाया जाए और आत्मसात किया जाये तो मात्राएँ जानो या नहीं ..मात्राएँ सही ही बैठेंगी ...
इसका प्रत्यक्ष उदहारण मैं स्वयं हूँ ...मुझे दोहे का व्याकरण जब नहीं पता था तब भी जो दोहे मैंने लिखे थे वह गणना के हिसाब से सही बैठते हैं ...कारण मैंने उन्हें तब सिर्फ लय को पकड़ कर लिखा था
//आपकी यह टिपण्णी "छंद-विधा को जान लेने के बाद समझौते न किया करें" बेहद मायने रखती है,कृपया इसे रचना पर सुझाव/संशोधन बताकर लाभान्वित करे //
दोहे दो पंक्तियों में कहा जाता है. एक पंक्ति दो चरणों में विभक्त होती है --विषम चरण तेरह मात्राओं का तथा सम चरण ग्यारह मात्राओं का.
विषम चरण का अंत लघु गुरु से या लघु लघु लघु से होना चाहिये. यानि, ग्यारहवीं मात्रा लघु होगी और बारहवीं और तेरहवीं संयुक्त हो गुरु बनाती हैं. या, ग्यारहवी, बारहवी और तेरहवी मात्रा लघु लघु लघु होती हैं.
सम चरण का अंत गुरु लघु से होता है. यानि सम चरण की नवमी और दसवीं मात्राएँ संयुक्त हो गुरु का निर्माण करती हैं; तथा, ग्यारहवीं मात्रा लघु होती है. दोहों से सम्बन्धित अन्य तथ्यों की ओर इशारा न कर बेसिक नियमों का हवाला दे रहा हूँ.
अब हम उपरोक्त दोहों के चरणों की मात्राएँ गिन लें. बात स्पष्ट हो जायेगी.
आदरणीय, इस मंच पर दोहों के ऊपर बहुत कुछ लिखा जा चुका है. हम उन लेखों को पढ़ जायँ. आयोजनों में विशेषकर ’चित्र से काव्य तक’ में छंदों पर खूब चर्चाएँ हुई हैं. उक्त आयोजन में दोहों पर अधिक प्रविष्टियाँ आयी हैं. प्रतिक्रियाओं के माध्यम से भी छंदों में विशेषकर दोहों में कथ्यों और तथ्यों का मुखर आदान-प्रदान हुआ है. हम उन आयोजनों के पृष्ठ भी देखते-पलटते रहें. सभी आयोजन सनद की तरह आज भी हम सभी के बीच हैं.
सादर
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी हार्दिक आभार आपका, आपकी धनात्मक एवेम कुछ सन्देश देती टिपण्णी मुझे बहुत प्रोत्साहित करती है | आपकी यह टिपण्णी "छंद-विधा को जान लेने के बाद समझौते न किया करें" बेहद मायने रखती है,कृपया इसे रचना पर सुझाव/संशोधन बताकर लाभान्वित करे |
आपको दोहा छंद पर कोशिश करते देख कर सुखद लगा, आदरणीय लक्षमणजी.
छंद-विधा को जान लेने के बाद समझौते न किया करें.
रचना पसंद कर उत्साह वर्धन हेतु हार्दिक आभार भाई श्री अशोक कुमार रक्तालेजी
आदरणीय
सादर, नारी महिमा का गुणगान करती सुन्दर रचना के लिये बधाई स्वीकारें.
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