डाली हरसिंगार की झूम उठी
मनमोहक फूलों के बोझ से
बल खाती हुई छेड़ जो रही थी
उसे ईर्ष्यालु सुगन्धित पवन
झर रहे थे पुहुप आलौकिक
दिल ही दिल में मगन
हर कोई चुन रहा था
सुखद स्वप्न बुन रहा था
अलसाई उनींदी पलकों
के मंच पर
ये द्रश्य चल रहा था
मेरा भी मन ललचाया
एक पुष्प उठाया
अंजुरी में सजाया
तिलस्मी पुष्प आह !
ताजमहल रूप उभर आया
अद्वित्य ,अद्दभुत
मेरे स्वयं ने मुझे समझाया
ये तेरा नहीं हो सकता
तुमने गलत पुष्प उठाया
मुस्काई और बोली
हर सिंगार लता
मुझको है सबका पता
जो दिन के उजाले में
अपने से छल करते हैं
वो उनींदी आँखों से तमस में
मेरे इन पुहुपों को चुनते हैं
इनमें बंद हैं सभी के
स्वप्नों के महल
हाँ ताज महल !!!
Comment
आदरणीय अशोक रक्ताले जी आपको रचना पसंद आई हार्दिक धन्यवाद
आदरणीय अम्बरीश जी आपकी प्रतिक्रिया से मेरी लेखनी को संबल मिला हार्दिक आभारी हूँ
//मेरा भी मन ललचाया
एक पुष्प उठाया
अंजुरी में सजाया
तिलस्मी पुष्प आह !
ताजमहल रूप उभर आया//
आदरेया राजेश कुमारी जी, इस रचना के माध्यम से परिलक्षित होता हुआ आपका प्रकृति प्रेम अद्वितीय है .....कृपया हार्दिक बधाई स्वीकार करें |
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आपकी प्रतिक्रियाओं से मेरी लेखनी का उत्साह एवं ऊर्जा वर्धन होता है हार्दिक आभार
आदरणीया राजेश कुमारीजी, हरसिंगार के पुष्प को बीनना, उसमें यादों को दफ़्न होते देखना.. एक ताज़महल के होने की अनुभूति .. वाह !
आपका प्रकृति सुषमा के प्रति आग्रह अभिभूत करता है. इस रचना हेतु बधाई स्वीकार करें.
बहुत सुन्दर रचना, आपकी कविताओं में प्रकृति का जिस कोमलता से वर्णन होता है, दिल खुश हो जाता है.
हरसिंगार के फूल और उनकी खुशबू, मुझे कॉलेज लाइफ में बेहद पसंद थे हरसिंगार के फूल, और मेरी एक अभिन्न सहेली नें मुझे जन्मदिन के तोहफे में, एक सुन्दर से गिफ्ट बॉक्स में बंद करके ढेर सारे हरसिंगार के फूल दिए थे, जो कई सालों मेरे पास रहे और महकते भी रहे.... बनस्थली कि यादें ताज़ा हो गयी...हार्दिक बधाई इस अभिव्यक्ति पर.
हार्दिक आभार राजेश कुमार झा जी आपको यह रचना पसंद आई
अद्भुत तरीके से अपनी बात आपने कही है । ईर्ष्यालु पवन,पलकों के मंच... बड़े सुंदर बिबों का प्रयोग रचना की सुंदरता को और बढ़ा देती है ।
बहुत- बहुत शुक्रिया राज नवद्वी जी
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