(चार चरण : विषम चरण
१२ मात्रा व सम चरण ७ मात्रा सम चरणों का अंत गुरु लघु से )
प्रात जागती नारी, नहिं आराम.
साथ नौकरी करती, है सब काम..
प्यार शक्ति दे तभी, उठाती भार.
नारी बिन यह दुनिया, है लाचार..
प्रेम स्नेह की करती, जग में वृष्टि.
पूजित नारी जग में, जिससे सृष्टि..
त्याग तपस्या सेवा, तेरे नाम.
शक्ति स्वरूपा नारी, तुझे प्रणाम..
सत्ता मद में गर्वित, नर है आज.
अखिल विश्व में नारी, का ही राज..
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--इं० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
Comment
सुन्दर शब्दों में नारी की महिमा का बखान. बधाई एवं साधुवाद.
स्वागत है राजेश कुमार झा साहब ! बहुत बहुत आभार भाईजी ! यहाँ पर हम सभी परस्पर सहयोग से एक दूसरे को सीखते सिखाते हैं ....
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय लड़ीवाला जी !
बरवै से तात्पर्य है...... कुरंग/ तामड़े या बादामी रंग का हिरन या ध्रुव ! सादर
अनुज संदीप जी, सर्वप्रथम बरवै छंदों की सराहना के लिए बहुत -बहुत आभार ! आपका मृदु व्यवहार मन को आनंदित कर देता है ! सस्नेह शुभाशीष !
स्वागत है भाई अशोक कुमार रक्तले जी ! बरवै छंदों की सराहना के लिए बहुत -बहुत बधाई !
आपकी प्रश्न के अनुसार 'बरवै' की परिभाषा प्रस्तुत है ...
शब्दकोष के अनुसार ...
बरवै : १९ मात्राओं का एक छंद जिसमें १२ और ७ मात्राओं पर यति और अंत में 'जगण' होता है अर्थात एक ऐसा छंद जिसके विषम अर्थात् पहले और तीसरे चरणों में बारह-बारह और सम अर्थात् दूसरे और चौथे चरणों में सात-सात मात्राएँ होती है बरवै कहलाता है | सम चरणों की अंतिम चार-चार मात्राओं का जगण के रूप में होना आवश्यक (रोचक) होता है। इसे 'ध्रुव' और 'कुरंग' भी कहते हैं ।
छंद प्रभाकर के रचयिता श्री जगन्नाथ प्रसाद भानु जी के अनुसार बरवै के अंत में जगण होना रोचक होता है परन्तु तगण का प्रयोग भी देखा जाता है ! अर्थात उनके उपरोक्त कथन से यह स्वतः ही स्पष्ट है कि बरवै का अंत जगण होने से रोचकता तो है पर इसकी अनिवार्यता नहीं है !
नवीन चतुर्वेदी जी के अनुसार बरवै के अंत में केवल गुरु-लघु आवश्यक है !
बरवै छंद
12+7=19 मात्रा वाला मात्रिक छंद
दोहे की तरह दो चरण - चार पद
पहला और तीसरा पद 12 मात्रा
दूसरा और चौथा पद 7 मात्रा
दूसरे और चौथे पद के अंत में गुरु लघु अक्षर
आप जब भी आते हैं बहुत कुछ दे जाते हैं, पहली बार बरवै का छंद विधान पढ़कर सीखने को मिला, सादर
बरवै का क्या अर्थ होता है भाई श्री अम्बरीश जी
तुलसी के पेड़ को कहते है क्या ? सुन्दर छंद रचना
त्याग तपस्या के आगे तो नत मस्तक है ही | बधाई
आदरणीय अम्बरीश सर जी सादर प्रणाम
बहुत उम्दा बरवै छंद रचे हैं आपने
सीखने के सार सुअवसर प्रदान करती रचना हेतु साधुवाद आपको
आदरणीय अम्बरीश जी
सादर प्रणाम, बहुत सुन्दर बरवै छंद पर बधाई स्वीकारें. मै प्रथम बार ही पढ़ रहा हूँ कृपया कुछ जानकारी और दें कि क्या इसमें भी सम चरण का अंत गुरु लघु से ही करना अनिवार्य है?
आदरेया राजेश कुमारी जी, बरवै छंद की सराहना के लिए सादर धन्यवाद स्वीकारें !
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