देख पिया को सम्मुख,मन हर्षाय,
देखे मुख को गौरी,नयन घुमाय/
पागल प्रेम दिवानी,पिया रिझाय,
सुधबुध खोकर अपनी,झूमति जाय/
हाथ धरे कभी शीश,चुमती जाय,
बनी मतवाली रीझ,घुमती जाय/
मुस्काय दिल पर हाय,घाव लगाय,
व्याकुल मनवा थिरके,चैन न पाय/
प्रेम पगे दिल आयी,मिलन कि चाह,
प्रेम बिना सूझे नहि, दूजी राह/
Comment
विनीता जी
सादर, आपको बैरवे छंद के भाव पसंद आये आपका हार्दिक आभार.
आदरणीय सौरभ जी
सादर, बिलकुल, यह बैरवे पर मेरा प्रथम प्रयास है. आदरणीय अम्बरीश जी के सहयोग से मै इसके विधान को समझ सका हूँ आशा है आगे इसकी त्रुटियों में सुधार कर सकूंगा. आपके स्नेहाशीष के लिए हार्दिक आभार.
सुन्दर भाव्यभिव्यक्ति अशोक जी. बधाई.
आपका बरवै पर यह संभवतः फल प्रयास है, भाईजी. लेकिन प्रयास के प्रति आपकी गंभीरता प्रस्तुति को गरिमामय बना रही है.
हार्दिक धन्यवाद व शुभकामनाएँ.
आदरणीय अम्बरीश जी
सादर, मेरा भी प्रयास आपसे अधिकाधिक ज्ञानार्जन का रहेगा अवश्य ही मै पुनः बैरवे पर प्रयास करूँगा. आभार.
आदरणीय बागी जी
सादर प्रणाम, आपकी बधाई अवश्य ही मुझे और अच्छे बैरवे लिखने के लिए प्रेरित करेगी. आभार.
सुन्दर प्रयास रक्ताले साहब, बधाई स्वीकारें |
स्वागत है आदरणीय अशोक जी, हमें आपके बरवै छंदों की प्रतीक्षा रहेगी !
आदरणीय अविनाश जी
सादर, यह मेरा बैरवे पर प्रथम प्रयास था आपकी वाह.... मन को गदगद कर रही है.आपका हार्दिक आभार.
आदरणीय लडीवाला जी
सादर प्रणाम, आपको यह प्रयास पसंद आया आपकी प्रतिक्रया पाकर मुझे उतना ही संतोष मिला. आभार.
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