मुक्तिका;
बेवफा से ...
संजीव 'सलिल'
*
बेवफा से दिल लगा के, बावफा गाफिल हुआ।
अधर की लाली रहा था, गाल का अब तिल हुआ।।
तोड़ता था बेरहम अब, टूटकर चुपचाप है।
हाय रे! आशिक 'सलिल', माशूक का क्यों दिल हुआ?
कद्रदां दुनिया थी जब तक नाश्ते की प्लेट था।
फेर लीं नजरों ने नजरें, टिप न दी, जब बिल हुआ।।
हँसे खिलखिल यही सपना साथ मिल देखा मगर-
ख्वाब था दिलकश, हुई ताबीर तो किलकिल हुआ।।
'सलिल' ने माना था भँवरों को कँवल का मीत पर-
संगदिल भँवरों के मंझधार भी साहिल हुआ।।
*****
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
Comment
अविनाश जी, योगराज जी, संदीप जी, राजेश कुमारी जी, वीनस जी, अम्बरीश जी, गणेश जी
आप सबको सादर नमन.
आपने मुक्तिका को सराह कर उत्साह वर्धन किया धन्यवाद.
प्रसन्नता है कि आप सब मुझे याद रखे हैं.
वीनस जी आप जब चाहें सीधे बात कर लिया करें... ०९४२५१८३२४४ या ०७६१ २४१११३१. अभी तो आपके दिल की पुकार सीधे ही मुझे खींच ले गयी.
ओबीओ को मैंने अपना ही मंच माना है. वातावरण और नियमों के परिवर्तन के कारण नियमित उपस्थिति संभव नहीं हो पाती है.
लगभग हर दिन ओबीओ पर एक बार दृष्टिपात तो करता ही हूँ. सबको नमन.
अधर की लाली रहा था, गाल का अब तिल हुआ।।kya bat hai..wah.
लाजवाब मुक्तिता आदरणीय आचार्य जी, दिल से बधाई.
आदरणीय सलिल सर जी सादर प्रणाम
आपकी इस मुक्तिका ने मन मोह लिया
हर मुक्त द्विपंक्ति सुन्दर और सुगढ़ है
भाव शिल्प कथ्य सभी का सुन्दर समावेश किया है आपने
ह्रदय से बधाई इस अनुपम काव्य रचना हेतु
कद्रदां दुनिया थी जब तक नाश्ते की प्लेट था।
फेर लीं नजरों ने नजरें, टिप न दी, जब बिल हुआ।।---मतलबपरस्त अहसान फरामोशी का अच्छा नमूना पेश किया ---बहुत ही अच्छी मुक्तिका मुझे तो ग़ज़ल लगी
आदरणीय आचार्य जी कितना हसीन इत्तेफाक है कि अभी परसों ही सौरभ जी से आपका हाल चाल मालूम कर रहा था और उनसे निवेदन कर रहा था कि आपको यहाँ सक्रिय होने के लिए आपसे संपर्क करें और आज आप प्रकट हो गये
कहीं उन्होंने आपसे संपर्क तो नहीं किया या सच में यह महज इत्तेफाक है
तोड़ता था बेरहम अब, टूटकर चुपचाप है।
हाय रे! आशिक 'सलिल', माशूक का क्यों दिल हुआ?
इस शेर की तो जो तारीफ़ करू कम है
बेहद घिसी पिटी बात को आपने जिस बारीकी से नयेपन का जामा पहनाया है वह लाजवाब है
सादर
आदरणीय आचार्य जी, सादर प्रणाम !
आपके द्वारा रचित यह अनमोल मुक्तिका हमें बहुत भायी! इसे हम सभी के मध्य साझा करने के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें !सादर
आदरणीय आचार्य जी, ओ बी ओ आपको और आपकी रचनाओं को सदैव मिस करता रहता है | आपकी यह रचना बहुत ही अच्छी लगी, उस्तादों वाली बात है इस अभिव्यक्ति में, बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें |
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