शब्द-तर्पण:
माँ-पापा
संजीव 'सलिल'
*
माँ थीं आँचल, लोरी, गोदी, कंधा-उँगली थे पापाजी.
माँ थीं मंजन, दूध-कलेवा, स्नान-ध्यान, पूजन पापाजी..
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माँ अक्षर, पापा थे पुस्तक, माँ रामायण, पापा गीता.
धूप सूर्य, चाँदनी चाँद, चौपाई माँ, दोहा पापाजी..
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बाती-दीपक, भजन-आरती, तुलसी-चौरा, परछी आँगन.
कथ्य-बिम्ब, रस-भाव, छंद-लय, सुर-सरगम थे माँ-पापाजी..
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माँ ममता, पापा अनुशासन, श्वास-आस, सुख-हर्ष अनूठे.
नाद-थाप से, दिल-दिमाग से, माँ छाया तरु थे पापाजी..
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इनमें वे थे, उनमें ये थीं, पग-प्रयास, पथ-मंजिल जैसे.
ये अखबार, आँख-चश्मा वे, माँ कर की लाठी पापाजी..
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माला-जाप, भाल अरु चंदन, सब उपमाएँ लगतीं बौनी,
माँ धरती सी क्षमा दात्री, नभ नीलाभ अटल पापाजी..
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माँ हरियाली पापा पर्वत, फूल और फल कह लो चाहे.
माँ बहतीं थीं 'सलिल'-धार सी, कूल-किनारे थे पापाजी..
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Comment
जो हैं वे क्या हैं जब वे नहीं होते तब पता चलता है और फिर बना शून्य उन्हें तस्वीरों की सीमाओं से भी निकाल कर स्मृतियों और फिर अनुमान के जगत में प्रतिस्थापित कर देता है. आचार्यवर, आपका शब्द-तर्पण सीता द्वारा सैकत-तर्पण की स्मृति दिला गया --जो बन सका समर्पित किया, सादर किया. आपकी प्रस्तुत संवेदनशील रचना समस्त कृतज्ञ पुत्र की ओर से नमन है.
प्राची जी, संदीप जी आपको रचना रुची तो मेरा लेखन सार्थक हो गया.
आदरणीय सर जी सादर
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति सर जी
ह्रदय से बधाई आपको इस सुन्दर रचना हेतु
परम आदरणीय सलिल जी
सादर प्रणाम, बहुत सुन्दर रचना हर पंक्ति अनुपम है. हार्दिक बधाई स्वीकारें.
ky kaho nishabbd ho gaya , shabd sanyojan , vyanjana , bhav, bimb ,bhasha sab dristikod se baut hi behatreen prastuti
अनूठा शब्द तर्पण ... जीवन की अनमोल थातीं होती हैं वे स्मृतियाँ जिनसे माँ-पिता का साथ जुडा होता है ...बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर कृति के लिए आदरणीय संजीव जी
आदरणीय संजीव सलिल जी,
सादर नमन!
आपकी रचनाओं का हमेशा इंतज़ार रहता है. शब्द भाव तर्पण , माता पिता कि स्तुति में, स्मृति में अभिव्यक्त के गयी उत्कृष्टतम रचना....हर पंक्ति में अखंडित ज़िन्दगी है इस भावांजलि हेतु हार्दिक साधुवाद व बहुत बहुत बधाई.
माला-जाप, भाल अरु चंदन, सब उपमाएँ लगतीं बौनी,
माँ धरती सी क्षमा दात्री, नभ नीलाभ अटल पापाजी..
बहुत प्रभावशाली पंक्तियाँ माता पिता दोनों के ही साए में बच्चा बड़ा होता है दोनों का ही बराबर महत्व है जो आपकी रचना में भली भाँति उभर कर आया है इस अनूठी उत्कृष्ट रचना के लिए बहुत बहुत बधाई सलिल जी
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