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गीत: साँसों की खिड़की पर... संजीव 'सलिल'

गीत:

साँसों की खिड़की पर...

संजीव 'सलिल'
*
साँसों की खिड़की पर बैठी, अलस्सुबह की किरण सरीखी 
आसों की चिड़िया का कलरव, सुनकर गहरी नींद खुली है...
 

सत्य जानकर नहीं मानता, उहापोह में मन जी लेता
अमिय चाहता नहीं मिले तो, खूं के आँसू ही पी लेता..
अलकापुरी न जा पायेगा, मेघदूत यह ज्ञात किन्तु नित-
भेजे पाती अमर प्रेम की, उफ़ न करे लब भी सी लेता..
सुधियों के दर्पण में देखा चाह चदरिया बिछी धुली है...
आसों की चिड़िया का कलरव, सुनकर गहरी नींद खुली है...

ढाई आखर पढ़ा न जिसने, कैसे बाँचे-समझे गीता?
भरा नहीं आकंठ सोम से, जो वह चषक जानिए रीता.
मीठापन क्या होता? कैसे जान सकेगी रसना यदि वह-
चखे न कडुआ तिक्त चरपरा, स्वाद कसैला फीका तीता..
मनमानी कुछ करी नहीं तो, तन का वाहक आत्म कुली है...
आसों की चिड़िया का कलरव, सुनकर गहरी नींद खुली है...

कनकाभित सिकता कण दिखते, सलिल-धार पर पड़ी किरण से.
तम होते खो देते निज छवि, ज्यों तन माटी बने मरण से..
प्रस्तर प्रस्तर ही रहता है, तम हो या प्रकाश जीवन में-
चोटें सह बन देव तारता, चोटक को निज पग-रज-कण से..
माया-छाया हर काया में, हो अभिन्न रच-बसी-घुली है...
आसों की चिड़िया का कलरव, सुनकर गहरी नींद खुली है...

श्वास चषक से आस सुधा का, पान किया जिसने वह जीता.
जो शरमाया हो अतृप्त वह, मरघट पहुँचा रीता-रीता..
जिया आज में भी कल जिसने, वह त्रिकालदर्शी सच जाने-
गत-आगत शत बार हुआ है, आगत होता पल हर बीता..
लाख़ करे तू बंद तिजोरी, रम्य रमा हो चपल डुली है...
आसों की चिड़िया का कलरव, सुनकर गहरी नींद खुली है...

देह देह से मिल विदेह हो, हो अगेह जो मिले गेह हो.
तृप्ति मिले जब तुहिन बिंदु से, एकाकारित मृदुल मेह हो..
रूपाकार न जब मन मोहे, निराकार तब 'सलिल' मोहता-
विमल वर्मदा, धवल धर्मदा, नवल नर्मदा अमित नेह हो..
नयन मूँद मत पगले पहले, देख कि मूरत-छवि उजली है...
आसों की चिड़िया का कलरव, सुनकर गहरी नींद खुली है...

******
 
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'

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Comment

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Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 21, 2012 at 10:17am

ब्रह्मसृष्टि का सार समाहित, सम्मुख विष्णु अलौकिक माया.

गीत आपका सरस्वती सा, इसमें जीवन सिंधु समाया..

निर्मल तन मन ज्ञान गंग से, प्रेषित करता हृदय बधाई- 

स्वीकारें यह काव्य सुमन प्रभु, रूप आपका यह मन भाया..

खेतों में अब छंद उगेंगें, प्रखर शिल्प की धूप खिली है

आसों की चिड़िया का कलरव, सुनकर गहरी नींद खुली है...    सादर

Comment by UMASHANKER MISHRA on July 20, 2012 at 11:39pm

देह देह से मिल विदेह हो, हो अगेह जो मिले गेह हो.
तृप्ति मिले जब तुहिन बिंदु से, एकाकारित मृदुल मेह हो..
रूपाकार न जब मन मोहे, निराकार तब 'सलिल' मोहता-
विमल वर्मदा, धवल धर्मदा, नवल नर्मदा अमित नेह हो..
नयन मूँद मत पगले पहले, देख कि मूरत-छवि उजली है...
आसों की चिड़िया का कलरव, सुनकर गहरी नींद खुली है...

आत्मा में प्रवेश कर गई ये लाईन...  सम्पूर्ण गीत मन भावन है आदरणीय सलिल जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद जो आपने  इतनी सुन्दर  उम्दा रचना पढने का सौभाग्य हमें प्रदान किया  ..पुनः आभार

Comment by Albela Khatri on July 20, 2012 at 11:07pm

प्रणाम गुरूवर प्रणाम
क्या कहने.......
भीतर तक भर दिया काव्यानंद
__जय हो

सुधियों के दर्पण में देखा चाह चदरिया बिछी धुली है...
आसों की चिड़िया का कलरव, सुनकर गहरी नींद खुली है...

___इन पंक्तियों पर बलिहारी.........
सादर

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 20, 2012 at 11:12am

आदरणीय आपकी रचना ने मन मोह लिया

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 20, 2012 at 9:35am

बहुत सुन्दर सर जी
क्या ही सुन्दर गीत वाह वाह
भावों को सुन्दर पिरोया है
वाह के अतिरिक कुछ और कहना कठिन ही है मेरे लिए
बधाई हो आपको


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 20, 2012 at 8:19am

मीठापन क्या होता? कैसे जान सकेगी रसना यदि वह-
चखे न कडुआ तिक्त चरपरा, स्वाद कसैला फीका तीता..

इस भाव पूर्ण एवं अर्थ प्रधान गीत हेतु बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें आचार्यवर ,

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 20, 2012 at 12:30am

श्वास चषक से आस सुधा का, पान किया जिसने वह जीता.
जो शरमाया हो अतृप्त वह, मरघट पहुँचा रीता-रीता..
जिया आज में भी कल जिसने, वह त्रिकालदर्शी सच जाने-
गत-आगत शत बार हुआ है, आगत होता पल हर बीता.. 
लाख़ करे तू बंद तिजोरी, रम्य रमा हो चपल डुली है...
आसों की चिड़िया का कलरव, सुनकर गहरी नींद खुली है...

आदरणीय सलिल जी अभिवादन ..रस बरसाती ..मन को छूती हुयी रचना ..गहन भाव सुन्दर सन्देश ...बधाई 

भ्रमर ५ 

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 19, 2012 at 10:58pm

भाव पूरित उकीर्ण पंक्तियाँ, शब्दांकन उत्साह भरा है

गीत सजाये मनस-द्वार को, हृदय देहरी भली खुली है ..

इस भावपूर्ण रचना हेतु सादर बधाई स्वीकार करें, आदरणीय सलिलजी.

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