======ग़ज़ल=======
बह्र ए खफीफ
वजन- २ १ २ २ , १ २ १ २ , २ २
यूँ बिछड़ने की ये अदा कैसी
इक मुलाक़ात की दुआ कैसी
जख्म दिल के हमारे भरने को
चश्म छलका रहे दवा कैसी
रात दिन याद में तेरी गुजरे
इश्क करने की ये सजा कैसी
बेबफाई से मिट गए आशिक
दिल में फिर भी है ये वफ़ा कैसी
संगदिल इश्क नहीं करते हैं
हो गयी आपसे खता कैसी
सामने मेरे झुका लीं पलकें
आइने से है ये हया कैसी
"दीप" अपनों को कैसे ठगना है
चल रही छल की ये हवा कैसी
संदीप पटेल "दीप"
सिहोरा जबलपुर ( म . प्र. )
Comment
अच्छा प्रयास किया है संदीप भाई |
आदरणीय वीनस सर जी , आदरणीय गुरुवर सौरभ सर जी
मैंने ग़ज़ल पकाई तो मगर फिर भी कच्ची रह गयी और फिर तडके के चक्कर में एक शेर की बह्र से ही भटक गया
और एक दो शेर भर्ती के जो बढे तो फिर सारा जायका ही बिगड़ गया
अगली बार जब पकाऊंगा तो पहले खुद चख के चखाऊंगा भी तभी परोसुंगा
आप का स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
सादर आभार
पहले जो शेर बे-बह्र हुआ वो ऐसा था
संगदिल इश्क तो नहीं करते
हो गयी आपसे खता कैसी
फिर पकते पकते जल्दबाजी में शायद नमन का डिब्बा उड़ेल दिया और सब किरकिरा हो गया
आदरणीय लक्षमण सर जी , आदरणीया राजेश कुमारी जी , आदरणीय अविनाश सर जी , आदरणीय गुरुवर सौरभ सर जी, आदरणीय वीनस सर जी सादर प्रणाम
आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया और सादर आभार
ये स्नेह अनुज पर यूँ ही बनाये रखिये
जख्म दिल के हमारे भरने को
चश्म छलका रहे दवा कैसी
संदीप जी
इस शेर पर ढेरों दाद
अच्छा शेर हो गया है, बड़ी बात को छोटी बहर में बखूबी कह गये
जितनी तारीफ़ करू कम है
१-२ शेर भर्ती के भी हैं
बहुत सुन्द.. .
जख्म दिल के हमारे भरने को
चश्म छलका रहे दवा कैसी
सामने मेरे झुका लीं पलकें
आइने से है ये हया कैसी .......... वाह वाह !
एक बात : सही कहा वीनसभाई.
संगदिल इश् /क नहीं कर / ते हैं
2122 / 1122 / 22
सामने मेरे झुका लीं पलकें
आइने से है ये हया कैसी ----बहुत प्यारा शेर बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए
जख्म दिल के हमारे भरने को
चश्म छलका रहे दवा कैसी
kya dawa hai Sandeep bhai.
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