नहि भेद लिखे कछु वेद कवी सब गाल बजावत मंचहि पे
निज वेशहि की परवाह करें बस ध्यान धरें धन संचहि पे
अब ब्रम्ह बने सूतहि जब है सब ज्ञान बखान विरंचहि पे
कलि कौतुक देख हसे सुर है गुरु बैठत है अब बेंचहि पे
कलिकाल धरा विकराल बढ़ा सुत मातु पिता नहि मानत है
धन की महिमा सब ओर सखे धनही सबका पहिचानत है
घर की नहि नारिहि मान करे ललचाय पराय अमानत है
सनदोह सहोदर मोह नही अब दारहि का सब जानत है
चिदानन्द शुक्ल "सनदोह"
Comment
बहुत बढ़िया |
आभार आदरणीय ||
जी सौरभ जी पढ़ा तो था पर उस समय बात स्पष्ट नहीं हो सकी थी इसलिए पुनः प्रश्न किया था ........ खैर निवेदन क्षमा सहित था इसलिए बच गयी
अब चिदानंद जी निश्चित करेंगे क्या उचित है (मैं क्यों डांट खाऊँ )
इसी लहजे में शब्दों की अक्सर आखिरी दीर्घ मात्राओं का ह्रस्व होना यानि गुरु का लघु मान लिया जाना चलता है. लेकिन इसीका विलोम दिक्कत का कारण बन जाता है, जिस पर सीमाजी ने प्रश्न किया है. मैं चिदानन्द जी के छंद में इस कवि को कवी रूप में देखा था. लेकिन आगे स्पष्ट होगा सोच कर आगे निकल गया था. -- विश्वास है, आपने मेरे इस कहे को पढ़ा है, सीमाजी !
सादर
क्षमा सहित निवेदन करूंगी सौरभ जी यहाँ कवी न तो आंचलिक रूप में प्रयुक्त हुआ है और न ही यह अव्यय है ..सिर्फ मात्राओं कि गिनती पूरी करने के लिए कवि को कवी कह कर बात निपटा दी गयी है .......
//यहाँ पर कवी शब्द का जो प्रयोग किया है वह मात्रा गणना कि जरूरत है //
ऐसा करना छांदसिक रचनाओं, विशेष कर वर्ण आवृति वाली रचनाओं, की ऐसी विवशता है जिससे पार पाने का प्रयास होना ही चाहिये. लेकिन खड़ी हिन्दी के शब्दों की अव्ययी प्रकृति के कारण ऐसा अक्सर नहीं हो पाता. यही कारण है कि सवैया जैसे छंदों में आंचलिक शब्दों या प्रारूप शब्दों का विशद प्रयोग होता है. इसी लहजे में शब्दों की अक्सर आखिरी दीर्घ मात्राओं का ह्रस्व होना यानि गुरु का लघु मान लिया जाना चलता है. लेकिन इसीका विलोम दिक्कत का कारण बन जाता है, जिस पर सीमाजी ने प्रश्न किया है. मैं चिदानन्द जी के छंद में इस कवि को कवी रूप में देखा था. लेकिन आगे स्पष्ट होगा सोच कर आगे निकल गया था. इसी तरह, कारक की विभक्तियों के एकवर्णी स्वरूपों का लघु मान लिया जाना इसी संदर्भ में स्वीकार्य हुआ करता है. यथा, ने, का, की, को, पे, में आदि को आवश्यकता होने पर लघु रूप में गिना जाना.
हालाँकि ऐसा कहना किसी शाब्दिक अनगढ़पन को मेरा अनुमोदन कत्तई नहीं है.
सधन्यवाद
बहुत सुन्दर अभ्व्यक्ति के दुर्मिल सवैया छंदों का प्रतुतिकरण, हार्दिक बधाई | विजय दशमी दिवस की भी हार्दिक शुभ कामनाए
आदरणीया राजेश कुमारी जी बहुत बहुत आभार
आदरणीय बागी जी बहुत बहुत आभार रचना कि प्रसंशा के लिए और आप को विजया दशमी कि हार्दिक शुभ कामनाएं
आदरणीया सीमा अग्रवाल जी यहाँ पर कवी शब्द का जो प्रयोग किया है वह मात्रा गणना कि जरूरत है बहुत बहुत आभार और जहां तक सौरभ पाण्डेय जी कि बात है वह मैंने गौर किया और सुधर के साथ पुनः प्रस्तुत किया है कमेन्ट के रूप में
आपकी छंद प्रस्तुतियां अधिकांशतः निर्दोष ही रहती हैं ऐसा मेरा अनुभव रहा है पर चिदानंद जी सौरभ जी की निगाह से कुछ भी गलत छूट नहीं सकता वो शुद्ध हो कर ही आगे बढ़ता है
एक आग्रह और कवी या कवि ?
बहुत सुन्दर और सटीक भाव व्यक्त किये हैं आपने आज की दशा के सन्दर्भ में ......हार्दिक बधाई
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