किस तरह हो यकीं आदमी का |
कोई होता नहीं है किसी का ||
आस्तीनों में खंजर छुपा कर |
दे रहे हो सबक़ दोस्ती का ||
पत्थरों के मकानों में रह कर |
दिल भी पत्थर हुआ आदमी का ||
मान लें बाग़बाँ कैसे उसको |
जिसने सौदा किया हर कली का ||
दर्द का बाँट लेना इबादत |
फ़लसफ़ा है यही ज़िन्दगी का ||
इसको आज़ादी माने तो कैसे |
आदमी है ग़ुलाम आदमी का ||
फैलें इंसानियत के उजाले |
सिलसिला ख़त्म हो तीरगी का ||
अश्क आँखों में है या सितारे |
बन गया सिलसिला रौशनी का ||
ज़ख़्मे – दिल फिर हरा हो गया है |
शुक्र है आँसुओं की नमी का ||
वो भी तो है ‘लतीफ़’ आदमी जो |
पी रहा है लहू आदमी का ||
©लतीफ़ ख़ान (दल्ली राजहरा)
Comment
आली जनाब नादिर साहिब , आप जैसे सुखन परवर हों तो हम जैसे नाचीज़ सुखनवरों को हौसला और हिम्मत मिलती है
जनाब नादिर साहब , आप जैसे सुखन परवरों की बदौलत ही हम जैसे नाचीज़ सुखनवर ज़िन्दा हैं | आप ने हौसला अफज़ाई की तहे - दिल से शुक्र गुज़ार हूँ |
आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी ,नाचीज़ की रचना को आप ने सराहा ...ममनूनो -मशकूर हूँ | आइन्दा भी आप के सुझाव और मशविरों का तालिब
श्री वीनस केसरी जी ,आप की हौसला अफज़ाई के लिए शुक्रिया .....मै ने आप की रचनाएँ गुफ़्तगू में पढ़ी हैं | आप तो वैसे भी मशहूर ओ मआर्रुफ़ शायर हैं | आप से दाद मिली ...ज़हे-नसीब |
पत्थरों के मकानों में रह कर |
दिल भी पत्थर हुआ आदमी का ||
सार्थक भावपूर्ण प्रस्तुति बधाई
एक बार फिर से आपने मंच को पुख्ता ग़ज़ल से नवाजा है
तहे दिल से ढेरों दाद
पत्थरों के मकानों में रह कर |
दिल भी पत्थर हुआ आदमी का ||
bahut umda baat kahi hai apne
(jab mitti ke gharon me rahte the to mitti ki khushboo bhi thi aur dil bhi narm tha mitti ki tarah )
//आस्तीनों में खंजर छुपा कर |
दे रहे हो सबक़ दोस्ती का ||//
वाह जनाब वाह, बहुत ही उम्दा कहन है, सभी शेर बढ़िया कहें हैं, बधाई कुबूल करें |
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