लिख कर अनुभव पत्रिका पार क्षितिज के पुराना साल गया |
ले कर कोरे पृष्ठ सहस्त्र देखो आया है फिर साल नया |
हों सम्बंध नए हों अनुबंध नए,
नव निर्मित बंधों के हों तटबंध नए,…
Added by लतीफ़ ख़ान on January 4, 2013 at 3:18pm — 8 Comments
Added by लतीफ़ ख़ान on December 1, 2012 at 6:28pm — 13 Comments
[1] जल चरणों के श्लोक यह , जग हित में शुभ-लाभ !
पी कर विष प्रदूषण का , हुआ नीर अमिताभ !!
[2] पाट कर सब ताल कुँए , हम ने की यह भूल !
पानी - पानी हो गई , निज चरणों की धूल !!
[3] कर न पायें दीपक ज्यों , तेल बिना उजियार !…
ContinueAdded by लतीफ़ ख़ान on November 20, 2012 at 4:57pm — No Comments
विरहन का क्या गीत अरे मन |
प्रियतम प्रियतम, साजन साजन ||
जब से हुए पी आँख से ओझल,
प्राण है व्याकुल साँस है बोझल,
किस विध हो अब पी के दर्शन || विरहन का...
प्रीत है झूटी सम्बन्ध झूटा,
सौगंध झूटी अनुबन्ध झूटा,
मिथ्या मन का हर गठबन्धन || विरहन का...
जब दर्पण में रूप सँवारूँ,
अपनी छवि में पी को निहारूँ,
मेरी व्यथा से अनभिज्ञ दर्पण || विरहन का...
दुख विरहन का किस ने जाना,
अपने भी अब मारें…
Added by लतीफ़ ख़ान on November 5, 2012 at 1:30pm — 5 Comments
किस तरह हो यकीं आदमी का |
कोई होता नहीं है किसी का ||
आस्तीनों में खंजर छुपा कर |
दे रहे हो सबक़ दोस्ती का ||
पत्थरों के मकानों में रह कर |
दिल भी पत्थर हुआ आदमी का ||
मान लें बाग़बाँ कैसे उसको |
जिसने सौदा किया हर कली का ||
दर्द का बाँट लेना इबादत |
फ़लसफ़ा है यही ज़िन्दगी का ||
इसको आज़ादी माने तो कैसे |
आदमी है ग़ुलाम आदमी का ||
फैलें इंसानियत के उजाले |
सिलसिला ख़त्म हो…
Added by लतीफ़ ख़ान on October 24, 2012 at 11:00pm — 8 Comments
दर्द को होंठों की मुस्कान बना देती है,
मौत को जीने का सामान बना देती है.
याद करता हूँ मैं जब भी "माँ" को दिल से,
हर मुसीबत को आसान बना देती है.
(नवरात्री की शुभकामनाएँ)
Added by लतीफ़ ख़ान on October 18, 2012 at 10:30am — 1 Comment
चारागर की ख़ता नहीं कोई.
दर्दे-दिल की दवा नहीं कोई.
आप आये न मौसमे-गुल में,
इससे बढ़कर सज़ा नहीं कोई.
ग़म से भरपूर है किताबे-दिल,
ऐश का हाशिया नहीं कोई.
देख दुनिया को अच्छी नज़रों से,
सब भले हैं बुरा नहीं कोई.
सच का हामी है कौन पूछा तो,
वक़्त ने कह दिया नहीं कोई.
है सफ़र दश्ते-नाउम्मीदी का,
मौतेबर रहनुमा नहीं कोई.
अपने ही घर में हैं पराये हम,
बेग़रज़ राबता नहीं कोई.
इस…
Added by लतीफ़ ख़ान on October 17, 2012 at 6:00pm — 8 Comments
“मीत मन से मन मिला तू और स्वर से स्वर मिला,”
कर लिया यह कर्म जिस ने उस को ही ईश्वर मिला.
कांच की कारीगरी में जो निपुण थे साथियों,
आजकल उन के ही हाथों में हमें पत्थर मिला.
पेट भर रोटी मिली जब भूखे बच्चों को हुज़ूर,
सब कठिन प्रश्नों…
Added by लतीफ़ ख़ान on October 15, 2012 at 1:30pm — 15 Comments
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