विरहन का क्या गीत अरे मन |
प्रियतम प्रियतम, साजन साजन ||
जब से हुए पी आँख से ओझल,
प्राण है व्याकुल साँस है बोझल,
किस विध हो अब पी के दर्शन || विरहन का...
प्रीत है झूटी सम्बन्ध झूटा,
सौगंध झूटी अनुबन्ध झूटा,
मिथ्या मन का हर गठबन्धन || विरहन का...
जब दर्पण में रूप सँवारूँ,
अपनी छवि में पी को निहारूँ,
मेरी व्यथा से अनभिज्ञ दर्पण || विरहन का...
दुख विरहन का किस ने जाना,
अपने भी अब मारें ताना,
कौन सुने अंतस का क्रन्दन || विरहन का...
डगमग डगमग जीवन नैया,
पार हो कैसे ये बिन खेवैया,
इस तट मैं हूँ उस तट साजन || विरहन का...
हवन - कुण्ड सा जीवन मेरा,
विरह अग्नि का जिस में डेरा,
व्यर्थ लगे अब पूजन अर्चन || विरहन का...
धूमिल धूमिल आस के अक्षर,
पृष्ट हुए जीवन के जर्जर,
कौन करे अब इस का विमोचन || विरहन का...
लिख लिख हारी मैं तो पाती,
बुझ ना जाए आस की बाती,
व्यर्थ लगे है अब यह जीवन || विरहन का...
©लतीफ़ ख़ान, दल्लीराजहरा.
Comment
कोमल कविता की अत्यंत सुन्दर बानगी .. . बधाई स्वीकारें, भाई लतीफ़ ख़ान जी.. .
सच कहा एक विरहन और क्या गा सकती है ! वो तो साँस भी लेती है तो हवाओं पर साजन लिख जाता है ! आपके गीत कई बार पढ़ गया ! बहुत अच्छा लगा ! कुछ अपना सा अनुभव हुआ पढकर !
हवन - कुण्ड सा जीवन मेरा,
विरह अग्नि का जिस में डेरा,
बहुत सुंदर रचना ...
विरहन के हृदय क्रंदन को बेहद सुन्दर शब्द मिले है इस अभिव्यक्ति में.
सुप्रवाहित, सुमधुर, गीत के लिए बहुत बहुत बधाई
विरहन का क्या गीत अरे मन |प्रियतम प्रियतम, साजन साजन
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