For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ऐसा वरदान हम को ईश्वर दे

                                                      ग़ज़ल 

                                                   [1]    ऐसा  वरदान  हम  को  ईश्वर  दे  ! 
                                                           झोलियाँ  सब की  प्यार  भर  दे  !
                                                   [2]    हो गणेशाय नमः से जो आरम्भ  ,  
                                                           ऐसे  कर्मो का फल भी सुन्दर  दे  !
                                                   [3]    देश  को  श्री  गणेश  "बाग़ी" सा  ,
                                                           शब्द-शिल्पी  दे ,  इंजिनियर  दे  !
                                                   [4]    जब "प्रभाकर" उदय हो"प्राची" से ,
                                                           आभामय  "अम्बरीष"  अम्बर दे  !
                                                   [5]    काव्य "सौरभ" लुटाये जग में जो .
                                                           उन को  सम्मान  और आदर  दे  !
                                                   [6]    ये  हैं  "राणा प्रताप", "धरमेन्दर" ,
                                                           इन  को    नामानुरूप   तेवर  दे  !
                                                   [7]    धन्य  "अविनाश बागडे"  भी  हैं  ,
                                                           दाद मन से जो सबको मन भर दे! 
                                                   [8]    चाहे "राजेश"  हों  या "सीमा" जी,
                                                           पुष्प  रूपा   हैं  फूलों   के   वर दे !  
                                                   [9]    जब हो"संजय","सतीश"का लेखन ,
                                                           उस में ओजस्विता के गुण भर दे !
                                                  [10]   हों चरणचिन्ह इनके जिस पथ पर,
                                                           पथ  वही  मुझ को  मेरे   ईश्वर  दे !
                                                  [11]   हम हों  सब के दुखों  में सहभागी ,
                                                           मन  में   इतनी  सहिष्णुता भर दे !
                                                  [12]   हम भी  गन्तव्य  तक पहुँच जाएँ ,
                                                           हम  को ऐसा  "लतीफ़"  सहचर दे !       
                                                                                             लतीफ़ खान,, दल्ली राजहरा,,

Views: 655

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on December 3, 2012 at 8:33pm

लतीफ़ भाई मंच के सम्मानित सदस्यों के प्रति आपके ये उद्गार काबिले तारीफ हैं। ईश्वर आपकी लेखनी को ऐसे ही बनाए रखे और आप अपने सुख़न से आदाब की खिदमत करते रहें! 

बहुत बहुत बधाइयाँ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 3, 2012 at 3:14pm

आदरणीय लतीफ़ जी आपने जो सबको एक एक मोती की तरह  एक ग़ज़ल सूत्र में पिरोया है आप भी उस ग़ज़ल का एक नायाब मोती हैं आपका इस मंच और इससे जुड़े सदस्यों के प्रति आपका प्रेम इस ग़ज़ल में उभर कर  आया है इतना मान देने के लिए दिल से आभारी हूँ स्नेह बनाए रखियेगा 

Comment by रविकर on December 3, 2012 at 12:21pm

आभार आदरणीय -

कुत्सित कलुषित कलेजे पावन हों-
उज्जल प्राचुर्य प्रांजल 'रवि-कर' दे |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 3, 2012 at 11:59am

आदरणीय लतीफ़ खान जी 

मंच के प्रति और सभी सदस्यों के प्रति अपने स्नेह भावों को बहुत सुन्दर ग़ज़ल में  अभिव्यक्त किया है आपने. इस स्नेह हेतु आपका आभार.

Comment by वीनस केसरी on December 3, 2012 at 12:04am

वाह !
लतीफ़ साहिब
आपने तो कमाल कर दिया

हार्दिक बधाई एवं शुभकामना

Comment by UMASHANKER MISHRA on December 2, 2012 at 10:56pm

जय हो  लतीफ़ भाई 

आपने ओ.बी.ओ.के प्रभामंडल में प्रकाशित रश्मियों को विकरित(प्रकाश को फैलाना ) कर दिया है 

आपका ये सम्मान वाजिब है आप भी इस प्रभामंडल के चमकते सितारे से कम नहीं 

आप राजहरा से हैं आप से मिलने और गजल के गुर समझने की तमन्ना है ..राजहरा जैसे क्षेत्र में बिजली नेट जैसी समस्या आम है एसी कठिन परिस्थितियों से जूझ कर आप यहाँ सम्ल्लित होतें है ये बहुत बड़ी बात है 

मुसयारे में आप की गजल को पढ़ा परन्तु व्यक्तिगत कारणों से प्रतिक्रिया नहीं दे पाया 

आपके  गजल लाजवाब रहते हैं 

हमें आप पर फक्र होता है 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 2, 2012 at 2:19pm
शेर दर शेर है तारीफे काबिल, 
मन लतीफ़ को शुक्रिया कर दे ।  
Comment by shalini kaushik on December 2, 2012 at 1:37pm
हों चरणचिन्ह इनके जिस पथ पर,
पथ वही मुझ को मेरे ईश्वर दे !
nice
Comment by अरुन 'अनन्त' on December 2, 2012 at 11:42am

आदरणीय खान साहब वाह बड़ी ही खूबसूरती के साथ एक ही ग़ज़ल में  इतने सारे चमचमाते तारों को सजा दिया।

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on December 2, 2012 at 1:10am

जोड़ रक्खा है आपने सबको,

कौन अब आपको ये ब्रेकर दे;

हम नहीं इन से सूरमाओं में,

मन में इस कोई ज्ञान ही भर दे;

सादर लतीफ़ भाई साहिब...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
17 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
yesterday
Admin posted discussions
Monday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service