लघुकथा : सुहागन
Comment
अत्यंत मार्मिक और समाज में व्याप्त 'पैशाचिक' प्रवृत्ति पर करारा प्रहार. बहुत बहुत बधाई आ. बागी जी.
सुधी सदस्यों की जानकारी के लिये कुल विवाहों का यथासंभव नाम दिया जाय तो संभवतः विषयांतर नहीं होगा.
मान्य विवाह हैं - ब्रह्म विवाह, आर्ष विवाह, प्रजापत्य विवाह, गंधर्व विवाह, असुर विवाह, राक्षस विवाह, पिशाच विवाह. कहीं-कहीं आठवें प्रकार के विवाह की भी चर्चा है जिसे दैव विवाह कहते हैं. यह कमोबेश आर्ष विवाह के समकक्ष होता है. इन विवाहों के अनुष्ठानों की प्रक्रिया पर फिर कभी.
लेकिन यह टिप्पणी पैशाचिक परम्पराओं का अनुमोदन कत्तई न समझी जाय.
सादर
आदरणीय योगराज भाईजी, सनातनी परंपरा और वाङ्गमय में कुल सात (कई जगह आठ) विवाहों की मान्यता है. उनमें सबसे निकृष्ट श्रेणी का विवाह पैशाचिक विवाह होता है जिसमें जातक को बलात् अपहृत कर वर या वधु बनाते हैं.
सुभद्रा-हरण पश्चात् विवाह भी देखिये क्या उदाहरण है जहाँ दोनों जातक परस्पर सहमति से ’अपहृत’ हुए थे और उक्त ’अपहरण’ में सहयोगी कन्या के भाई कृष्ण ही थे जबकि दूसरे भाई बलराम इस अपहरण प्रकरण के पूरी तरह से विरुद्ध थे. और अच्छा-खासा युद्ध भी हुआ ! लेकिन जब सारथी कृष्ण हों तो अपहरण भी कला बन जाती है. बलराम बहन को देखते रह गये और अर्जुन कन्या के साथ ’निकल’ लिये !
"पैशाचिक विवाह" - वाह वाह आदरणीय अम्बरीष जी क्या सुन्दर नामकरण किया है, परफेक्ट.
आदरणीय बागी जी | बहुत बहुत बधाई स्वीकारें ........आपकी यह लघुकथा आमने आप में बहुत मार्मिक है ! वस्तुतः इस प्रकार के बलात् विवाह पैशाचिक विवाह की कोटि में आते हैं | इनको किसी भी आधार पर सामाजिक मान्यता नहीं मिलनी चाहिए|
ऐसे ही विषय पर भोजपुरी में एक फिल्म भी है ! शायद रऊरा देखले होखब, "घुंघटा उठाके चाँद देख ल'....!
दिल से पढ़ें तो इस लघुकथा में आंसू निकालने की क्षमता है... लाजवाब गणेश जी.... बधाई स्वीकारें !
वाह बागी जी वाह, क्या दर्द उभर कर सामने आया है इस लघुकथा में. इस रचना के माध्यम से आपने एक बहुत ही भयंकर सामजिक कुरीति पर ज़बरदस्त कुठाराघात भी किया है, इस सार्थक कृति हेतुमेरी हार्दिक बधाई स्वीकर करें.
आदरणीय उमाशंकर मिश्र जी, लघु कथा की विस्तृत विवेचना करने एवं सराहने हेतु आपका बहुत बहुत आभार, यूँ ही सहयोग बनाये रखें |
आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लडिवाला जी, लघु कथा को पसंद करने एवं सराहने हेतु बहुत बहुत आभार |
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