महिमा रोज की ही तरह आज भी सुबह पाँच बजे अधपूरी नींद से उठ गई ! फिर घर की दैनिक सफाई के बाद बेड टी बनाकर अजय को जगाया, और सोनू को जगाकर स्कूल के लिए तैयार करने लगी ! सोनू स्कूल चला गया ! महिमा ने अजय के ऑफिस के कपड़े इस्त्री किए, फिर उसे जगाया, उसका नाश्ता बनाया ! अजय उठा और महिमा को इधर-उधर की दो चार हिदायते देते हुवे तैयार हुवा, और आखिर नौ बजे ऑफिस चला गया ! उसके जाने के बाद महिमा ने नहाकर थोड़ी पूजा की, फिर लंच तैयार किया और लंच लेकर सोनू के स्कूल गई, समय था बारह ! घर आकर खाना खाई और फिर किचन की साफ़-सफाई में लगी, ये सब करते समय हुवा दो ! अब उसने कुछ पल आराम करना चाहा कि तभी सोनू स्कूल से आ गया ! वो सोनू में लग गई ! उसकी स्कूल ड्रेस उतारी, फिर होमवर्क कराने लगी ! इन सबमे चार बज गए ! अब वो लेटी ! कुछ ही पल बीते कि अजय आ गया ! आते ही महिमा को जगाया ! बोला, “महिमा उठो-उठो...मेरी वो पार्टी वाली शर्ट कहाँ हैं..जल्दी दो !”
“शर्ट तो अलमारी में होगी, पर इस्त्री नही है ! अभी कर देती हूँ !”
“क्या मतलब...इस्त्री नही है !” अजय चिल्लाया, “.तुम करती क्या हो दिन भर....सोने से और इधर-उधर की बकवास से फुरसत मिलेगी तब न करोगी इस्त्री...आदमी काम पे गया नही कि तुम्हारी बकवास शुरू....और तो कोई चिंता है नही...जाने कब समझोगी अपनी जिम्मेदारी !” कहते हुवे अजय चला गया !
-पियुष द्विवेदी ‘भारत’
Comment
nice one..sachchai.
पियूष जी, सादर नमस्कार,
एक गृहणी की जीवनचर्या की सूक्ष्म और सकारात्मक विवेचना के लिए धन्यवाद पीयूष ......
पीयुष जी, वास्तव में यह एक महिमा की ही कथा नहीं है .....अपने घर में प्रतिदिन १६ से १८ घंटे काम करने वाली कितनी ही महिलाओं को ऐसी बातें रोज सुननी पड़ती हैं| इस सशक्त लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें |
आदरणीय सौरभ जी, आपकी सराहना मिली, ये रचना सफल हुई ! कोटिशः धन्यवाद ! यूं ही स्नेहाशीष सदैव रखें !
अरे.. . यह रचना कब आगयी..? चुपचाप ! .. .और, जिस तरीके से आयी है उसी तरह से शब्द प्रति शब्द चुपचाप रिसती हुई पाठक की सोच का अहम् हिस्सा बनती चली जाती है. कुछ ऐसे, कि प्रतीत ही नहीं होता कि यह कोई कथा-रचना भी है ! भई, वाह ! ये महिमा ही नहीं, यह तो हर उस सीमा, रेखा, कमला, सुषमा.. या न जाने कितनी-कितनी ऐसी आम गृहणियों की कथा है जो एक सुबह से देर गये रात तक एकसुर में बस जुटी रहती हैं ! और घर घर बना बेफ़िक़्री में चलता रहता है.
इस विन्दु पर कथात्मकता तैयार करने के लिये पियुषजी को हार्दिक बधाई और उज्ज्वल भविष्य के लिये असीम शुभकामनाएँ !
आदरणीय योगराज जी, आपसे सकारात्मक प्रतिक्रिया पाकर रचना के प्रति काफी आश्वस्त हुवा ! बहुत बहुत धन्यवाद,,,,,,!
बहुत ही यथार्थवादी लघुकथा कही है भाई पियूष जी, सच में सारा दिन किसी नौकर की तरह काम करने वाली स्त्री को हर रोज़ ऐसी ही बातें सुनने को मिलती हैं. मेरी हार्दिक बधाई इस सुन्दर कृति पर.
आदरणीय गणेश जी... ये कहानी यथार्थ है ही, ज्योंकि मैंने जो लिखा है, वो घरों में आम तौर पर होते देखा है ! यहाँ तक की चार पुरुषों की बातचीत में भी अक्सर ऐसे मुद्दों पर चर्चा होने लगती है !
बहुत बहुत धन्यवाद आपका....!
आदरणीया राजेश कुमारी जी... आपको कहानी अच्छी लगी, बहुत बहुत आभार !
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