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दीदार के खातिर यूँ आवाम दिवानी है

कुछ विपत्तियों के चलते में मुशायरे में वक़्त नहीं दे पाया इसके लिए सभी अग्रजों गुरुजनों और सदस्यों से क्षमा चाहता हूँ आशा है अनुज को क्षमा करेंगे
आज कुछ उबरा तो सोचा कुछ लिखूं


हर काम निराला माँ लगता है कहानी है
दुर्गा है तू ही काली माँ आदि भवानी है

दिन रात भरा रहता दरबार ये मैया का
दीदार के खातिर यूँ आवाम दिवानी है

तुमसी न कोई सूरत ममता की तू ही मूरत
सुन्दर से भी है सुन्दर माँ रूप की रानी है

ये वक़्त के पहिये भी माँ तुम ही चलाती हो
तुझसे है नफस सबकी तुझसे ही रवानी है

कण कण में बसी हो तुम आधार हो दुनिया का
महिमा ये तुम्हारी माँ वेदों ने बखानी है

लौटा न कोई खाली दरबार से तेरे माँ
इस जग में कोई दूजा तुम जैसा न दानी है

तूफ़ान भरी रातों में दीप जला है माँ
फानूस बनो मैया अब लाज बचानी है

संदीप कुमार पटेल

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Comment

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on November 4, 2012 at 4:59pm

आप सभी का ह्रदय से शुक्रिया और सादर आभार
वक़्त की कमी के वजह से वक़्त नहीं दे पा रहा हूँ कुछ कठिन दौर से गुजर रहा हूँ आशा है जल्द ही आप सबके आशीर्वाद और दुआओं से सब ठीक हो जायेगा

ji raaj saahab aapki naseehat sar aankhon

sneh yun hi bnayae rakhiye

Comment by seema agrawal on November 1, 2012 at 2:04pm

बहुत बढ़िया और नए तरह कि प्रस्तुति के लिए बधाई संदीप जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 31, 2012 at 12:11pm

प्रिय संदीप  देवी मैया के लिए लिखी इस मुसल्सल ग़ज़ल के लिए बधाई 

Comment by राज़ नवादवी on October 31, 2012 at 11:04am

प्रिय संदीपजी, बधाई हो, मंच पे आपकी मुराजअत (वापसी) हुई. 'आवाम' लफ्ज़ को देख लें, मेरे ख्याल से सही लफ्ज़ 'अवाम' है जो आम का जम्आ है, और मुज़क्कर (पुल्लिंग) है, मुअन्नस (स्त्रीलिंग) नहीं. 

सादर! 

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