वैदेही सोच रही मन में यदि प्रभु यहाँ मेरे होते
लव-कुश की बाल -लीलाओं का आनंद प्रभु संग में लेते .
जब प्रभु बुलाते लव -कुश को आओ पुत्रों समीप जरा ,
घुटने के बल चलकर जाते हर्षित हो जाता ह्रदय मेरा ,
फैलाकर बांहों का घेरा लव-कुश को गोद उठा लेते !
वैदेही सोच रही मन में यदि प्रभु यहाँ मेरे होते !!
ले पकड़ प्रभु की ऊँगली जब लव-कुश चलते धीरे -धीरे ,
किलकारी दोनों की सुनकर मुस्कान अधर आती मेरे ,
पर अब ये दिवास्वप्न है बस रोके आंसू बहते-बहते .
वैदेही सोच रही मन में यदि प्रभु यहाँ मेरे होते !!
लव-कुश को लाकर उर समीप दोनों का माथा लिया चूम ,
तुम केवल वैदेही -सुत हो ; जाना पुत्रों न कभी भूल ,
नारी को मान सदा देना कह गयी सिया कहते -कहते .
वैदेही सोच रही मन में यदि प्रभु यहाँ मेरे होते !!
शिखा कौशिक 'नूतन '
Comment
laxman ji ,shalini ji ,ravikar ji v arun ji -aap sabhi ka hardik aabhar tippani hetu .
देवी सीता को माध्यम बनाकर एक स्त्री और एक माँ के उद्गारों को बहुत ही सुन्दर तरीके से शब्द दिए है आपने ! वाह ! बहुत ही सुन्दर और हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति !
शुभकामनायें बहन शालिनी -
बहना बांटे दर्द है, जिनके पति हैं दूर |
एकल माता बन करे, फर्ज हमेशा पूर ||
नारी और वह भी माँ, विरह में क्या क्या भाव मन में लाती होगी, इसकी सुन्दर अभ्व्यक्ति
माँ और पत्नी दोनों के विशेष परिस्थितिजन्य मनोभावों का सम्यक चित्रण
बधाई शिखा जी
शिखा जी, रामायण के किसी एक प्रसंग को लेकर उसपर मार्मिक कविता रचना, बहुत ही उम्दा है, बधाई स्वीकार करें |
बहुत सुन्दर बहुत प्यारे, ममत्व भाव से परिपूर्ण रचना हेतु बहुत बहुत बधाई आपको
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