जब वो आते धूम मचाते
मन अंतर पर वो छा जाते
खुशियों के लाते उपहार,
क्या सखी साजन? नहीं त्यौहार.
रंग गेहुआ कड़कदार वो
बच्चों बूढों सबका यार वो
भटके, फिर भी वो गली गली
क्या सखी साजन? नहीं मूंगफली.
घुले हवा जब उसकी खुशबू
रहे नहीं तब मन पर काबू
दिल पर छाए उसका जलवा
क्या सखी साजन? नहीं सखी हलवा.
Comment
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी, सराहना द्वारा उत्साहवर्धन करने हेतु बहुत बहुत आभार.
सुन्दर कहमुकरियाँ कही हैं डॉ प्राची जी, बधाई स्वीकार करें
हार्दिक आभार राजेश कुमार झा जी ,
आपने सही कहा, यह विधा बहुत ही सुन्दर है.
असल में कह-मुकरी दो सखियों के बीच का वार्तालाप है, जिसमे एक सखी बातों बातों में (बद्खायाली में ) अपने प्रिय की बात बता देती है,फिर दूसरी सखी पूछती है तो मुकर जाती है, की नहीं मैं तो किसी और के बारे में बात कर रही थी.
इस विधा के शिल्प के बारे में जितना मुझे ज्ञात है, उस अनुसार
इसमें चार चरण होते है व प्रत्येक चरण में १६-१६ मात्राएँ होती हैं , चरणों का अंत समतुकांत होता है. अंत में यदि दीर्घ हो तो गेयता में बढ़ोतरी होती है.
कहमुकरियाँ आपको पसंद आयीं इस हेतू हार्दिक आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी
हार्दिक आभार आदरणीय सतीश मापत्पुरी जी
हार्दिक आभार आदरणीय अविनाश जी
बहुत बहुत आभार आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लडिवाला जी
बड़ी सुंदर विधा है एवं उतनी ही अच्छी प्रस्तुति । इसके शिल्प,विन्यास के बारे में जानना चाहता हूं । कुछ जानकारी दें तो बड़ा अच्छा हो
सुन्दर सामयिक कह्मुकरियाँ प्रिय प्राची जी
जब वो आते धूम मचाते
मन अंतर पर वो छा जाते
खुशियों के लाते उपहार,
क्या सखी साजन? नहीं त्यौहार. ...... बहुत खूब सम्मानित प्राची जी , बधाई
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