नेता खुद करते फिरें, इधर उधर की ऐश
दीवाली पर ना मिले, तेल, कोयला, गैस
तेल, कोयला, गैस, चूल्हा जलेगा कैसे
रंक भाड़ में जाय, भरलो बैंक में पैसे
वोट दियो पछताय, मनुज अब जाकर चेता
उजले हैं परिधान, ह्रदय से काले नेता
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Comment
आज की राजनीति के साधकों से आप खूब झेल गयी हैं. प्रतीत हो रहा है. खूब खबर ले रही हैं आप. क्या कहा जाय, बात सही भी है. बधाई हो, आदरणीया राजेश कुमारी जी. शिल्पबद्ध रचना का बेहतर निर्वहन हुआ है.
एक बात : आप किसी नेता विशेष की चर्चा तो कर नहीं रही हैं. कुण्डलिया की प्रथम पंक्ति कहती भी है.. . नेता खुद करते फिरें . फिर कुण्डलिया की अंतिम पंक्ति में काला नेता नहीं काले नेता होना अधिक उचित होता, है न ?
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