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संवेदनहीनता का घिनौना रूप आपने इस कहानी से बताया है .साधुवाद .
लघुकथा को सराहने हेतु बहुत बहुत आभार प्रिय पियूष द्विवेदी जी |
बहुत सुन्दर लघुकथा आदरणीय गणेश जी....... लघुकथा की बड़ी खासियत कि वो अंत में सीधे मन को छूती है, का बड़ा ही दमदार निर्वहन हुवा है ! बधाई.......!
वीनस जी आपके निशब्दता पर मैं आशंकित हूँ ।
आदरणीया राजेश कुमारी जी, आपकी टिप्पणी मेरे लिए अति महत्वपूर्ण है, बहुत ही सबल मिलता है, सराहना हेतु आभार ।
प्रिय अश्वनी कुमार जी, आपका ओ बी ओ पर पुनः स्वागत है , लघु कथा को पसंद करने और सराहने हेतु आभार ।
अति सुन्दर एवं सार्थक प्रस्तुति आदरणीय भैया गणेश जी....बधाई.......
इस लघु कथा को पढ़कर ऐसा महसूस हुआ जैसे अचानक सर पर कोई बहुत बड़ा वजन आ गिरा हो सच में हिला के रख दिया इस कथा के मर्म ने आज के दौर में सब कुछ हो सकता है इंसान में स्वार्थपरता दूसरों के दुःख दर्द के प्रति असंवेदन शीलता और युवा पीढ़ी में ेश करने के लिए पैसे की लालसा इस कदर बढ़ गई है की कुछ भी कर सकते हैं बहुत बहुत बधाई आँखे खोलती इस कथा के लिए आदरणीय गणेश जी ।
अग्रज को सादर अभिवादन ,,बहुत दिन हो गए अग्रज के लघु कथा के रसास्वाड्न का अनुभव हुए सोचा की आज जरा चख ही लूँ ,,दरअसल मै अपना और इन कार्यों हेतु उपयोग किया जाने मेल आई डी दोनों का ही चाभी भूल गया था तो अनुपस्थिति स्वाभावाविक ही हो गई ,,, भूत की बुनियाद पर वर्तमान का निर्माण होता है और वर्तमान से ही सीख लेकर भविष्य अपने रास्ते बनाता है ,,यही हमारे समाज का कड़ुवा सच है और यही बहुमत मे है हम अपने तुच्छ सवार्थ हेतु किसी के भी जीवन से खिलवाड़ कर सकते हैं क्योंकि तेज रफ्तार हैं हमारे अंदर प्रतिस्पर्धातमक गुण है और भी न जाने क्या क्या ,हर छोटी से छोटी बात के दूरगामी परिणाम होते हैं ,आज की युवा पीड़ी जो कल को बच्चे थे न जाने कितनी छोटी छोटी बातों ने उनके मसतिष्क को विकृत किया और कर रही है ,,,आज के कालेज स्कूल शिक्षा कम अमीर और गरीब का फर्क ज्यादा समझाते हैं ,,आज को ही लीजिये बाल दिवस है बड़ी बिटिया जो चौथी क्लास मे है उसे पिकनिक के लिए डेयरी मिल्क का बड़ा वाला चाकलेट का डिब्बा और चिप्स आदि न जाने क्या चाहिए था मेरे लाख समझाने पर भी उसे समझ नही आया की घर का भी बना हुआ ले जाया जा सकता है दरअसल वह अपने टीचर की फर्माबरदार विद्यार्थी है और अगर मैडम ने कहा है तो उसे पूरा करना है लेकिन अगर घर की हैसियत न हो तो बच्चों को अमीर गरीब का फर्क तुरंत समझ आ जाता है ऐसे तमाम छोटे मोटे कारण होते हैं समाज को विकृत करने के लिए ,,,इस लघु कथा जो बहुत बड़ा संदेश दे रही है के लिए हार्दिक आभार ।
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