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ढूँढ़ लफ्जों को, गजल कहना कठिन है-रविकर

2 1 2 2 2 1 2 2 2 1 2 2

टिप्पणी भी अब नहीं छपती हमारी ।
छापते हम गैर की गाली-गँवारी ।

कक्ष-कागज़ मानते कोरा नहीं अब-
ख़त्म होती क्या गजल की अख्तियारी ।

राष्ट्रवादी आज फुर्सत में बिताते -
कल लड़ेंगे आपसी वो फौजदारी ।

नाक पर उनके नहीं मक्खी दिखाती-
मक्खियों ने दी बदल अपनी सवारी ।

ढूँढ़ लफ्जों को, गजल कहना कठिन है-
चल नहीं सकती यहाँ रविकर उधारी ।।

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Comment

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Comment by अरुन 'अनन्त' on December 2, 2012 at 1:36pm

रविकर सर आपके लिए कुछ भी कठिन नहीं यह आपने इस ग़ज़ल में ही कह दिया है बहुत खूब सर बधाई स्वीकारें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 29, 2012 at 9:43am

बहुत बढ़िया प्रयास किया रविकर जी ग़ज़ल लिखने का बहुत बहुत बधाई 

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on November 29, 2012 at 9:27am

दमदार गज़ल रविकर भाई ...खासकर ये मक्ता शेर -

ढूँढ़ लफ्जों को, गजल कहना कठिन है-
चल नहीं सकती यहाँ रविकर उधारी ।।

बधाई कबूलें !

Comment by shalini kaushik on November 28, 2012 at 9:47pm

ढूँढ़ लफ्जों को, गजल कहना कठिन है-
चल नहीं सकती यहाँ रविकर उधारी ।।

sahi kaha ravikar ji.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 28, 2012 at 7:54pm

आपका ग़ज़ल हेतु हुआ प्रयास मुग्ध कर रहा है, आदरणीय रविकरजी.

सादर

Comment by रविकर on November 28, 2012 at 6:57pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय विवेक जी ,अग्रज लक्ष्मण जी भाई रक्ताले जी-

Comment by Ashok Kumar Raktale on November 28, 2012 at 6:43pm

ना छपी कोई गाली ना ही गवारी,

यह तो है भैया बड़ी ही रंगदारी/

सुन्दर रचना आदरणीय रविकर जी सादर  बधाई स्वीकारें.

Comment by विवेक मिश्र on November 27, 2012 at 8:23pm

/टिप्पणी भी अब नहीं छपती हमारी ।
छापते हम गैर की गाली-गँवारी ।/- Achchha vyang hai Ravikar Ji. Badhaai.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 27, 2012 at 6:54pm

बधाई सफलता जो पाई 

बहुत खूब रविकर भाई ।
Comment by वीनस केसरी on November 27, 2012 at 6:24pm

रविकर जी क्षमा प्रार्थी हूँ गडबड़ी पर राय नहीं दे सकता
क्योकि इस रचना में मात्राओं की कोई गडबड़ी नहीं है

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