For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ढूँढ़ लफ्जों को, गजल कहना कठिन है-रविकर

2 1 2 2 2 1 2 2 2 1 2 2

टिप्पणी भी अब नहीं छपती हमारी ।
छापते हम गैर की गाली-गँवारी ।

कक्ष-कागज़ मानते कोरा नहीं अब-
ख़त्म होती क्या गजल की अख्तियारी ।

राष्ट्रवादी आज फुर्सत में बिताते -
कल लड़ेंगे आपसी वो फौजदारी ।

नाक पर उनके नहीं मक्खी दिखाती-
मक्खियों ने दी बदल अपनी सवारी ।

ढूँढ़ लफ्जों को, गजल कहना कठिन है-
चल नहीं सकती यहाँ रविकर उधारी ।।

Views: 591

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 2, 2012 at 1:36pm

रविकर सर आपके लिए कुछ भी कठिन नहीं यह आपने इस ग़ज़ल में ही कह दिया है बहुत खूब सर बधाई स्वीकारें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 29, 2012 at 9:43am

बहुत बढ़िया प्रयास किया रविकर जी ग़ज़ल लिखने का बहुत बहुत बधाई 

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on November 29, 2012 at 9:27am

दमदार गज़ल रविकर भाई ...खासकर ये मक्ता शेर -

ढूँढ़ लफ्जों को, गजल कहना कठिन है-
चल नहीं सकती यहाँ रविकर उधारी ।।

बधाई कबूलें !

Comment by shalini kaushik on November 28, 2012 at 9:47pm

ढूँढ़ लफ्जों को, गजल कहना कठिन है-
चल नहीं सकती यहाँ रविकर उधारी ।।

sahi kaha ravikar ji.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 28, 2012 at 7:54pm

आपका ग़ज़ल हेतु हुआ प्रयास मुग्ध कर रहा है, आदरणीय रविकरजी.

सादर

Comment by रविकर on November 28, 2012 at 6:57pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय विवेक जी ,अग्रज लक्ष्मण जी भाई रक्ताले जी-

Comment by Ashok Kumar Raktale on November 28, 2012 at 6:43pm

ना छपी कोई गाली ना ही गवारी,

यह तो है भैया बड़ी ही रंगदारी/

सुन्दर रचना आदरणीय रविकर जी सादर  बधाई स्वीकारें.

Comment by विवेक मिश्र on November 27, 2012 at 8:23pm

/टिप्पणी भी अब नहीं छपती हमारी ।
छापते हम गैर की गाली-गँवारी ।/- Achchha vyang hai Ravikar Ji. Badhaai.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 27, 2012 at 6:54pm

बधाई सफलता जो पाई 

बहुत खूब रविकर भाई ।
Comment by वीनस केसरी on November 27, 2012 at 6:24pm

रविकर जी क्षमा प्रार्थी हूँ गडबड़ी पर राय नहीं दे सकता
क्योकि इस रचना में मात्राओं की कोई गडबड़ी नहीं है

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Ravi Shukla commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आदरणीय अजय जी किसानों को केंद्र में रख कर कही गई  इस उम्दा गजल के लिए बहुत-बहुत…"
3 hours ago
Ravi Shukla commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी, अच्छी  ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें. अपनी टिप्पणी से…"
4 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाई जी नमस्कार ग़ज़ल का अच्छी प्रयास है । आप को पुनः सृजन रत देखकर खुशी हो रही…"
4 hours ago
Ravi Shukla commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय बृजेश जी प्रेम में आँसू और जदाई के परिणाम पर सुंदर ताना बाना बुना है आपने ।  कहीं नजर…"
4 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

सार छंद 16,12 पे यति, अंत में गागाअर्थ प्रेम का है इस जग मेंआँसू और जुदाईआह बुरा हो कृष्ण…See More
Thursday
Deepak Kumar Goyal is now a member of Open Books Online
Thursday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
Wednesday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
Wednesday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"अपने शब्दों से हौसला बढ़ाने के लिए आभार आदरणीय बृजेश जी           …"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहेदुश्मनी हम से हमारे यार भी करते रहे....वाह वाह आदरणीय नीलेश…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आदरणीय अजय जी किसानों के संघर्ष को चित्रित करती एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी एक और खूबसूरत ग़ज़ल से रूबरू करवाने के लिए आपका आभार।    हरेक शेर…"
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service