For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आपने सराहा / बड़ा मजा आया


21 2221 2221 2221 2


यह जुबाँ कहती जुबानी, जो जवानी ढाल पर ।
क्या करे शिकवा-शिकायत, खुश दिखे बदहाल पर ।|

आँख पर परदे पड़े, आँगन नहीं पहले दिखा -
नाचते थे उस समय जब रोज उनकी ताल पर ।।


कर बगावत हुश्न से जब इश्क अपने आप से -
थूक कर चलता बना बेखौफ माया जाल पर ।।

आँच चूल्हे में घटी घटते सिलिंडर देख कर
चाय काफी घट गई अब रोक ताजे माल पर ।।

वापसी मुश्किल तुम्हारी, तथ्य रविकर जानते
कौन किसकी इन्तजारी कर सका है साल भर ||

Views: 621

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by रविकर on December 5, 2012 at 11:50am

आभार आदरणीय अरुण जी ||

Comment by रविकर on December 5, 2012 at 11:49am

बहुत बहुत आभार आदरणीय |
आभार ओ बी ओ ||


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 5, 2012 at 12:49am

भाई रविकर जी ! मैं आपकी इस ग़ज़ल पर विस्मित भी हूँ और अतीव प्रसन्न भी ! वाकई आप शब्दों के चितेरे हैं.

ग़ज़ल को बह्र पर ले आना और कहना इस सुन्दर तरीके से हुआ है कि मन खुश हुआ है -

आँख पर परदे पड़े, आँगन नहीं पहले दिखा -
नाचते थे उस समय जब रोज उनकी ताल पर ।।

बधाई भाईजी.

Comment by Abhinav Arun on December 4, 2012 at 8:30pm

वाह रविकर जी अ|पका ये अंदाज़ मन को भा गया हार्दिक बधाई इस बहु आयामी ग़ज़ल पर !!

Comment by रविकर on December 4, 2012 at 10:52am

जी आदरणीय वीनस जी ।

आभार आदरणीय भाई लडीवाला जी ।।

आभार आदरणीय अजय शर्मा जी ।।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 4, 2012 at 9:50am

बेहतरीन भाव अभिव्यक्ति बधाई रविकर भाई 

Comment by वीनस केसरी on December 4, 2012 at 2:13am

क्या कहने
वाह
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
लाजवाब द्विपदिका
बधाई स्वीकारें

शीर्षक से रचना का रिश्ता समझ नहीं आया 
मात्रा क्रम पर पुनः ध्यान दें ....
उचित विश्राम क्रम यह है
२१२२ / २१२२ / २१२२ / २१२

सादर

Comment by ajay sharma on December 3, 2012 at 10:52pm

POORI GITIKA KE LIYE DAAD QUBOOL KARE 

Comment by रविकर on December 3, 2012 at 8:48pm

आभार आदरणीय चंद्रेश जी आदरणीय डाक्टर 'सूरज' ||

आभारआद्रेया राजेश दी ||
 

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on December 3, 2012 at 8:01pm

रविकर जी बहुत बधाई और दिली दाद की हकदार है आपकी ग़ज़ल||

आँख पर परदे पड़े, आँगन नहीं पहले दिखा -
नाचते थे उस समय जब रोज उनकी ताल पर ।।

बहुत ही सुन्दर तरीके से बहुत सारे सच इसमें छुपा दिए हैं आपने |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service