For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बंजरों के लोग भी अब कस्तियाँ लेने लगे

कार में बैठे शराबी चुस्कियाँ लेने लगे
तब भिखारी भी शहर के आशियाँ लेने लगे

रूठना आता नहीं है पर दिखावा कर लिया
रूठने के बाद हम ही सिसकियाँ लेने लगे


घूमने आये थे मंत्री जो निरिक्षण में अभी
चाय पीकर वो भी देखो झपकियाँ लेने लगे

रोज-ए-महसर की ख़बरें इस कदर छाने लगी
बंजरों के लोग भी अब कस्तियाँ लेने लगे

छोड़ आये थे जिसे हम "दीप" बन के बेबफा
याद उसने जब किया हम हिचकियाँ लेने लगे

संदीप पटेल "दीप"

Views: 588

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on December 16, 2012 at 10:41pm

छोड़ आये थे जिसे हम "दीप" बन के बेबफा
याद उसने जब किया हम हिचकियाँ लेने लगे
इस शेर ने तो कमाल कर दिया है आदरणीय संदीप जी. सुन्दर गजल पर बधाई स्वीकारें.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 7, 2012 at 3:45pm

जी आदरणीय वीनस जी
मैंने गलती की
क्यूंकि में
रोज- ए- महसर इन तीनों को प्रथक प्रथक पढ़ रहा था
रोज फिर ए  फिर महसर
आपका एक बार पुनः  ह्रदय से आभारी हूँ
सुधार कर लिया है
इस प्रकार से
क्या अब सही है 

रोजे महसर की खबर तो इस कदर छाने लगी
बंजरों में लोग भी अब कस्तियाँ लेने लगे

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 7, 2012 at 3:44pm

आदरणीया डॉ प्राची जी , आदरणीय पियूष जी सादर प्रणाम
आपने ग़ज़ल को पसंद किया और अपने बेशकीमती विचार रखे
इसके लिए मैं आपका तहे दिल से आभारी हूँ
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 7, 2012 at 9:42am

रूठना आता नहीं है पर दिखावा कर लिया 
रूठने के बाद हम ही सिसकियाँ लेने लगे... बहुत नाज़ुक भावों नें शब्द लिए है, वाह 

घूमने आये थे मंत्री जो निरिक्षण में अभी 
चाय पीकर वो भी देखो झपकियाँ लेने लगे.....क्या खूब शब्द चित्र उकेरा है मंत्रियों द्वारा निरीक्षण की औपचारिकता का , बहुत खूब!

छोड़ आये थे जिसे हम "दीप" बन के बेबफा 
याद उसने जब किया हम हिचकियाँ लेने लगे....बहुत सुन्दर शेर.

हार्दिक बधाई इस सुन्दर ग़ज़ल केलिए संदीप जी.

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on December 7, 2012 at 8:20am

लाजवाब संदीप भाई जी, पूरी गज़ल के साथ-साथ इस शेर के लिए विशेष दाद कबूलें भाई...

छोड़ आये थे जिसे हम "दीप" बन के बेबफा
याद उसने जब किया हम हिचकियाँ लेने लगे

बेशक ये हासिले-गज़ल है !

Comment by वीनस केसरी on December 7, 2012 at 1:39am

भाई इजाफत इस्तेमाल करने में कोई दिक्कत नहीं है मगर आपने इजाफत करते हुए मात्रा गलत ली है
अर्थात गलत वज्न पर बाँध दिया है
रोज-ए-महसर  का सहीह वज्न के लिए लेख माला में सम्बन्धित लेख पढ़ें --

क्रम ७ - अलिफ़-वस्ल, इज़ाफत और वाव-ए-अत्फ़

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 6, 2012 at 3:50pm


आदरणीय नादिर साहब , आदरणीय गुरुदेव सौरभ सर जी , आदरणीय वीनस सर जी , आदरणीय लक्षमण सर जी, आदरणीय अरुण जी , आदरणीया महिमा जी
सादर प्रणाम आप सभी को
आपने मेरी ग़ज़ल को वक़्त दिया और हौसलाफजाई की इसके लिए आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया और सादर आभार
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

तत आदरणीय वीनस जी
क्या इस शेर में इजाफत का उपयोग नहीं कर सकते हैं
रोज-"ए"-महसर

कृपया मार्गदर्शन करें ताकि मेरी तकनीक में कुछ और इजाफा हो

Comment by MAHIMA SHREE on December 6, 2012 at 3:45pm

घूमने आये थे मंत्री जो निरिक्षण में अभी
चाय पीकर वो भी देखो झपकियाँ लेने लगे... ::))

नमस्कार संदीप जी .. बहुत बढ़िया // बधाई आपको

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 6, 2012 at 11:48am

वाह मित्र वाह उम्दा ग़ज़ल कुछ अशआर तो माशाल्लाह लाजवाब हैं, बधाई स्वीकारें

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 6, 2012 at 10:56am
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति की लिए हार्दिक बधाई स्वीकारेश्री संदीप कुमार पटेल जी 
राज भी दे खूब  दिलासा  घर बसाने का चुनावों पर 
घुम्मकड़ बनजारा भी अपना आसरा यूँ बसाने लगे  ।  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"रिश्तों की महत्ता और उनकी मुलामियत पर सुन्दर दोहे प्रस्तुत हुए हैं, आदरणीय सुशील सरना…"
32 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक - गुण
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, बहुत खूब, बहुत खूब ! सार्थक दोहे हुए हैं, जिनका शाब्दिक विन्यास दोहों के…"
41 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय सुशील सरना जी, प्रस्तुति पर आने और मेरा उत्साहवर्द्धन करने के लिए आपका आभारी…"
58 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय भाई रामबली गुप्ता जी, आपसे दूरभाष के माध्यम से हुई बातचीत से मन बहुत प्रसन्न हुआ था।…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय समर साहेब,  इन कुछेक वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है। प्रत्येक शरीर की अपनी सीमाएँ होती…"
1 hour ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
2 hours ago
Samar kabeer commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"भाई रामबली गुप्ता जी आदाब, बहुत अच्छे कुण्डलिया छंद लिखे आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।"
7 hours ago
AMAN SINHA posted blog posts
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . विविध

दोहा पंचक. . . विविधदेख उजाला भोर का, डर कर भागी रात । कहीं उजागर रात की, हो ना जाए बात ।।गुलदानों…See More
yesterday
रामबली गुप्ता posted a blog post

कुंडलिया छंद

सामाजिक संदर्भ हों, कुछ हों लोकाचार। लेखन को इनके बिना, मिले नहीं आधार।। मिले नहीं आधार, सत्य के…See More
Tuesday
Yatharth Vishnu updated their profile
Monday
Sushil Sarna commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"वाह आदरणीय जी बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल बनी है ।दिल से मुबारकबाद कबूल फरमाएं सर ।"
Nov 8

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service