धरती माँ ही पालती, रख नारी का मान,
यही रहेगी संपदा, कर नारी के नाम ।
बहती नदी सी नारी, दूजे घर को जाय,
अपनावे ता उम्र ही, घर उसका हो जाय ।
ममता भाव की भूखी, केवल चाहे मान,
रुखी सूखी पाय भी, घर की रखती शान ।
झेल रही है बेटियाँ, अपना सब अपमान,
बाँध टूटता सब्र का, तुझे न इसका भान ।
नारी का सम्मान करे, तब घर का तू नाथ,
दूजे घर को छोड़ कर, पकड़ा तेरा हाथ ।
लड़के की ही चाह में, सहन किया है पाप,
भ्रूण हत्या पाप करे, झेले फिर संताप |
झेल चुकी है बेटियाँ,बड़े बड़े अपमान,
लड़के अब कुंवारे फिरे, नहीं रहे अरमान ।
बेटी अपने जहन में, यह भी रखती ध्यान,
बिना नम्रता के यहाँ, किसको मिलता मान ।
बेटी मेरी बात को,रख जीवन भर याद,
तेरे काँधे ही टिकी, इस घर की बुनियाद ।
बेटी मेरी बात तू,यह भी रखना याद,
बिना नम्रता के यहाँ,जीवन है बर्बाद ।
बेटा बेटी देन है, इश्वर की सौगात,
मुख इनसे क्यों मोड़ते,एक ही इनके तात ।
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला
Comment
दोहे पसंदकर हॉंसला बढ़ाने के लिएहार्दिक आभार श्री अशोक रक्ताले साहिब
आदरणीय लड़ीवाला साहब
सादर, बहुत सुन्दर भाव प्रकट करते या कहूँ जग को जाग्रत करते दोहों पर बधाई स्वीकारें.
दोहे लिखने का मकसद तो समाज को जागरूक करना और आगाह करना होता है । कबीर, रहीम,बिहारी आदि कवियो के दोहे समाज को जागरूक करने के ही निम्मित है । दोहे सारगर्भित बन पड़े यह सौभाग्य की बात है । आपका हार्दिक आभार आदरणीया महिमा श्री जी
आदरणीय लक्ष्मण सर , सादर नमस्कार
बहुत ही सारगर्भित दोहें .. समाज को चेतावनी तो दे ही रही है आपकी रचना, साथ ही बेटियों के दुखी मन का चित्रण भी बहुत ही सच्चाई के साथ बयाँ कर रही है /
आपको बहुत -2 बधाई और साधुवाद /
रचना सराहने के लिए हार्दिक आभार आपका श्री राजेश कुमार झा जी
आपकी रचना बहुत सुंदर संदेश देती है समाज को भी और बेटी को भी खास तौर से ये पंक्तियां
बेटी मेरी बात को,रख जीवन भर याद,
तेरे काँधे ही टिकी, इस घर की बुनियाद ।
बड़ी सहजता से लिखी गई हैं, बहुत बधाई
आदरणीय श्री प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा जी, रचना सराह्कर दोहों के प्रति होंसला बढाने हेतु आपका हार्दिक आभार
आदरणीय लड़ीवाला जी,
सादर अभिवादन
बहुत सुन्दर भाव युक्त अभिव्यक्ति हेतु बधाई
रचना पसंद करने के लिए हार्दिक आभार विजय मिश्र जी
रचना पसंद करने के लिए हार्दिक आभार डॉ अजय खरे जी
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