प्रिये तुम प्रिये तुम कहाँ गुम कहाँ गुम
तुझे ढूढूं दिन रैना हो के मैं भी गुम
तेरे बिन दिल को चैन नहीं है
मन कहे मुझसे तू यहीं कहीं है
शब् भर आँखें जाग रहीं है
निन्दिया मुझसे मेरी भाग रही है
वो जो पायलिया पहनी थी तुमने
करे हरदम कानों में रुन झुन
प्रिये तुम प्रिये तुम कहाँ गुम कहाँ गुम
तुझे ढूढूं दिन रैना हो के मैं भी गुम
हर-सू गुलशन में फूल खिले हैं
चाहत की राहों में खार मिले हैं
पंछी करते हैं अब शोर सुबह से
लेकिन मेरे तन्हा होंठ सिले हैं
सर्दी के मौसम में दिल ये जले है
अँखियों से गिरती है शबनम
प्रिये तुम प्रिये तुम कहाँ गुम कहाँ गुम
तुझे ढूढूं दिन रैना हो के मैं भी गुम
मुझको नहीं आता है तुझे मनाना
तू तो रूठी है यूँ करके बहाना
दिल के अन्दर कोई देख न पाता
क्यूँ पत्थर दिल मुझको कहे ज़माना
घूमे थे संग संग जिन गलियों में
फिरता हूँ अब तो मैं गुमसुम
प्रिये तुम प्रिये तुम कहाँ गुम कहाँ गुम
तुझे ढूढूं दिन रैना हो के मैं भी गुम
अब न सता तू लौट के आजा
बदली बनके बंजर दिल में छा जा
साँसे कहती मेरी जान है तू ही
जिस्म में बनके मेरी रूह समा जा
अक्स हूँ तेरा मैं तो हमदम
मिल जाओ तो हो जाएँ हम तुम
प्रिये तुम प्रिये तुम कहाँ गुम कहाँ गुम
तुझे ढूढूं दिन रैना हो के मैं भी गुम
संदीप पटेल "दीप"
Comment
BAHOT KHOOB
आप सभी का इस जर्रानवाजी के लिए हृदय से शुक्रिया और सादर आभार
ये स्नहे अनुज पर यों ही बनाये रखिये
आदरणीय झा साहब ये दिल की दास्ताँ है
और लगता है सब कवी विरह श्रृंगार को ऐसे ही देखते होंगे तो
इसीलिए ये इत्तेफाक हुआ होगा
bichoh ka marmik chintan and lekhan sandeep ji aap badai ke hakdaar he
संदीप पटेल जी..
प्रिय के विछोह को बर्दाश न कर पाते...
साथ को तड़पते ह्रदय के शालीन उद्गारों को सुन्दर अभिव्यक्ति मिली है...हार्दिक बधाई
सुन्दर गीत रचा है संदीप भाई बधाई स्वीकारें
शानदार ...
''संग-संग घूमे जिन गलियों में/वे भी हैं गुमसुम-गुमसुम/प्रिये कहां तुम, प्रिये कहां तुम.....मैंने यह गीत कल ही लिखा है और अजब इत्तेफाक है ठीक वही संवेदना आपके मन में आई और आपने कलमबद्ध कर दिया । बहुत बधाई
deep ji virah geet achcha hai.badhai swikar karein.samiir
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online