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और कितनी है जुदाई पता तो चले
वो मेरी है या पराई, पता तो चले

यूं बहारों पे कब्ज़ा यूं फिजाओं पे हुक्म
अदा ये किसने सिखाई पता तो चले

कँवल खिलने लगे अब्र जलने लगे
किसने ले ली अंगडाई पता तो चले

ये किसने छुआ है, ये किसका नशा है
ये कली क्यों बलखाई पता तो चले

चाँद खिलने लगा गुल महक से गये
मेहँदी किसने रचाई पता तो चले

खोलकर आज गेसू वो मुस्कुरा गये
मौत किसपे है आई पता तो चले

गनीमत यही उन्हें मुहब्बत तो हुई
कुछ उन्हें भी तन्हाई पता तो चले

-पुष्यमित्र उपाध्याय

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Comment by Dr.Ajay Khare on December 13, 2012 at 1:42pm

bahut sunder gajal he badhai 

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 13, 2012 at 1:38pm

पुष्यमित्र उपाध्याय जी आप जब भी आते हैं कुछ नया लाते हैं जवाब नहीं आपका खूबसूरत ग़ज़ल मित्र ढेरों बधाइयाँ

यूं बहारों पे कब्ज़ा यूं फिजाओं पे हुक्म

अदा ये किसने सिखाई पता तो चले         वाह क्या बात है

 

Comment by Pushyamitra Upadhyay on December 13, 2012 at 11:45am

आदरणीय गणेश सर, सुमन दीदी, अजय सर, महिमा दीदी...आप सभी का आशीष पाकर अभिभूत हूँ अनुज का प्रणाम स्वीकार कीजिये...

Comment by MAHIMA SHREE on December 13, 2012 at 10:54am

कँवल खिलने लगे अब्र जलने लगे
किसने ले ली अंगडाई पता तो चले

ये किसने छुआ है, ये किसका नशा है
ये कली क्यों बलखाई पता तो चले

चाँद खिलने लगा गुल महक से गये
मेहँदी किसने रचाई पता तो चले....

सुंदर अभिवयक्ति!!!!!

पुष्यमित्र जी बधाई स्वीकार करें

Comment by SUMAN MISHRA on December 12, 2012 at 11:27pm

सच्ची सच्ची कहा , की गजल अच्छी है आपकी
हमारी दाद कबूलें, जरा पता तो चले ..


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 12, 2012 at 8:21pm

अच्छी ग़ज़ल, दाद कुबूल कर लेंगें कृपया |

Comment by ajay sharma on December 12, 2012 at 7:30pm

ये किसने छुआ है, ये किसका नशा है
ये कली क्यों बलखाई पता तो चले A -----------nitant maulik bhanvo ka sangrahan kiya hai is rachna me ,,,dili mubaraqbad    

Comment by Pushyamitra Upadhyay on December 12, 2012 at 6:57pm

saadar aabhar prachi didi....rajesh sir....


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 12, 2012 at 5:39pm

मन में नाज़ुक भावनाओं के कोमल सवालों के जवाब का इंतज़ार करती सुन्दर ग़ज़ल 

हार्दिक बधाई प्रिय पुष्यमित्र जी 

Comment by राजेश 'मृदु' on December 12, 2012 at 5:28pm

बड़ी नाजुक सी गजल कही है पुष्‍यमित्र जी, बधाई

कृपया ध्यान दे...

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