सड़क पर पड़े, उस दुर्घटना ग्रस्त व्यक्ति को अपनी गाड़ी में लेकर रमेश अभी-अभी अस्पताल पहुंचा था ! उससे नहीं देखा गया कि हजारों की भीड़ में से एक आदमी भी उस तड़पते व्यक्ति के लिए आगे नही आ रहा है ! वो समझ नही पा रहा था कि लोग इतने संवेदनहीन कैसे हो सकते हैं ? और बस इसीलिए वो उस व्यक्ति को अपनी कार में डालकर अस्पताल ले आया था ! अभी उस व्यक्ति का ऑपरेशन चल रहा था ! कुछ देर बाद....! ओटी के बाहर जलता बल्ब बंद हुवा और डॉक्टर बाहर निकले !
“क्या हुवा डॉक्टर? सब ठीक तो है न ?” रमेश ने पूछा !
“आय एम सॉरी ! हम मरीज को नही बचा पाए !” डॉक्टर नजरें झुकाते हुवे बोले ! ये सुनकर रमेश किंचित निराश और दुखी हुवा !
“अब जो होना था वो हो गया ! आप मरीज को जानते भी नही थे और मामला भी दुर्घटना का है ! इसलिए हमने पुलिस को फोन कर दिया है, वो आते ही होंगे ! तबतक आप यही रहें !” डॉक्टर ने कहा !
पुलिस का नाम सुनकर रमेश थोड़ा घबराया, पर गलत न होने के कारण सम्हल गया ! पुलिस आई ! प्रारंभिक रूप से मामले को समझने के बाद इंस्पेक्टर रमेश से बोला, “आपको पूछताछ के लिए थाने चलना होगा, साथ ही जबतक मृत व्यक्ति के विषय में कुछ पता नही चल जाता, आप कहीं जाएंगे भी नही !”
“पर मै क्यों?” रमेश चौका, “मै तो इसे अस्पताल लाया !”
“हो सकता है ये दुर्घटना तुम्हारी ही गाड़ी से हुई हो, और फिर तुम इसे अस्पताल लाए हों ! इसलिए चुपचाप चलो और जांच में मदद करो ! निर्दोष हो तो बच ही जाओगे ! बाहर आ जाओ !” ये कहकर इंस्पेक्टर चल दिया ! रमेश का दिमाग एकदम हतप्रभ था, उसे कुछ समझ नही आ रहा था, सिवाय एक बात के, कि वहाँ हजारों की भीड़ संवेदनहीन क्यों थी ?
-पियुष द्विवेदी ‘भारत’
Comment
आदरणीय, आपकी कथा पर मैं वाह-वाह कर रहा हूँ. इससे आगे आपकी रचना पर कुछ कहना सही नहीं होगा.
आदरणीय जवाहर जी, आपने कथा को समझा, बहुत बहुत धन्यवाद !
आदरणीय पीयूष जी, सादर अभिवादन!
सच्चाई को दर्शाती रचना के लिए बधाई स्वीकारें! पुलिस के चक्कर से बचने के लिए ही आमजन आज 'संवेदनहीन' हो गए है!
//यह पंक्ति इस कथा में अनिवार्य तो बेशक नही थी, पर मुझे कथा की गति हेतु किंचित उपयोगी अवश्य लगी, और इसीलिए इसे डाला ! हो सकता है यह त्रुटिपूर्ण हो,//
तब अनावश्यक सुझाव देने हेतु हमें हार्दिक खेद है भाईजी. आप साहित्य जगत को लाभान्वित करें.
सधन्यवाद
आदरणीय सौरभ जी, बहुत बहुत धन्यवाद लघुकथा अपने बहुमूल्य विचारों को रखने के लिए !
//ओटी के बाहर जलता बल्ब बंद हुवा और डॉक्टर बाहर निकले//
यह पंक्ति इस कथा में अनिवार्य तो बेशक नही थी, पर मुझे कथा की गति हेतु किंचित उपयोगी अवश्य लगी, और इसीलिए इसे डाला ! हो सकता है यह त्रुटिपूर्ण हो, चूंकि लघुकथा एक संयमी विधा है, और मै नवोदित ! अतः आपकी बात सादर स्वीकार्य है !
पुनः धन्यवाद !
//“हो सकता है ये दुर्घटना तुम्हारी ही गाड़ी से हुई हो, और फिर तुम इसे अस्पताल लाए हों ! इसलिए चुपचाप चलो और जांच में मदद करो ! निर्दोष हो तो बच ही जाओगे !//
इस पारिभाषिक पंक्ति पर समाप्त हुई लघु-कथा ’संवेदनहीन’ आज के किसी जागरुक नागरिक को समाज के प्रति अदम्य उत्साह से निर्लिप्त कर देने के लिए काफी है. तथ्यात्मक सच्चाई ही लघुकथा बन कर प्रस्तुत हुई है.
//ओटी के बाहर जलता बल्ब बंद हुवा और डॉक्टर बाहर निकले//
इस पंक्ति या नाटकीयता की इस कथा में आवश्यकता थी भी क्या ? या, सामान्यतया ऐसा कहीं देखा है भी आपने ? जलता लाल बल्ब ?
भाईजी, लघुकथाओं में नाटकीयता के क्रम में तनिक भी शाब्दिकता कथा की सान्द्रता को विरल कर देती है. संयम न रखा गया तो यही शाब्दिकता आगे कथा के क्रम में वाचालता में परिणत हो जाती है.
मैं इस तरह की एक भयंकर दुर्घटना का भुक्तभोगी रहा हूँ, इसी से कह पा रहा हूँ. बहरहाल, लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई.
दीपक भाई जी, हो सकता है कोई और लघुकथा भी हो, पर मैंने अभी तक नही पढ़ी है ! सादर !
हालांकि इस विषय पर एक लघुकथा और पढी थी जिसका अंत भी काफी मिलता-जुलता था, मगर फिर भी यह लघुकथा अच्छी ही कहायेगी।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online