For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सड़क पर पड़े, उस दुर्घटना ग्रस्त व्यक्ति को अपनी गाड़ी में लेकर रमेश अभी-अभी अस्पताल पहुंचा था ! उससे नहीं देखा गया कि हजारों की भीड़ में से एक आदमी भी उस तड़पते व्यक्ति के लिए आगे नही आ रहा है ! वो समझ नही पा रहा था कि लोग इतने संवेदनहीन कैसे हो सकते हैं ? और बस इसीलिए वो उस व्यक्ति को अपनी कार में डालकर अस्पताल ले आया था ! अभी उस व्यक्ति का ऑपरेशन चल रहा था ! कुछ देर बाद....! ओटी के बाहर जलता बल्ब बंद हुवा और डॉक्टर बाहर निकले !

“क्या हुवा डॉक्टर? सब ठीक तो है न ?” रमेश ने पूछा !

“आय एम सॉरी ! हम मरीज को नही बचा पाए !” डॉक्टर नजरें झुकाते हुवे बोले ! ये सुनकर रमेश  किंचित निराश और दुखी हुवा !

“अब जो होना था वो हो गया ! आप मरीज को जानते भी नही थे और मामला भी दुर्घटना का है ! इसलिए हमने पुलिस को फोन कर दिया है, वो आते ही होंगे ! तबतक आप यही रहें !” डॉक्टर ने कहा !

पुलिस का नाम सुनकर रमेश थोड़ा घबराया, पर गलत न होने के कारण सम्हल गया  ! पुलिस आई ! प्रारंभिक रूप से मामले को समझने के बाद इंस्पेक्टर रमेश से बोला, “आपको पूछताछ के लिए थाने चलना होगा, साथ ही जबतक मृत व्यक्ति के विषय में कुछ पता नही चल जाता, आप कहीं जाएंगे भी नही !”

“पर मै क्यों?” रमेश चौका, “मै तो इसे अस्पताल लाया !”

“हो सकता है ये दुर्घटना तुम्हारी ही गाड़ी से हुई हो, और फिर तुम इसे अस्पताल लाए हों ! इसलिए चुपचाप चलो और जांच में मदद करो ! निर्दोष हो तो बच ही जाओगे ! बाहर आ जाओ !” ये कहकर इंस्पेक्टर चल दिया ! रमेश का दिमाग एकदम हतप्रभ था, उसे कुछ समझ नही आ रहा था, सिवाय एक बात के, कि वहाँ हजारों की भीड़ संवेदनहीन क्यों थी ?

-पियुष द्विवेदी ‘भारत’  

Views: 661

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Shubhranshu Pandey on December 14, 2012 at 9:23am

आदरणीय, आपकी कथा पर मैं वाह-वाह कर रहा हूँ. इससे आगे आपकी रचना पर कुछ कहना सही नहीं होगा. 

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on December 14, 2012 at 7:31am

आदरणीय जवाहर जी, आपने कथा को समझा, बहुत बहुत धन्यवाद !

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 14, 2012 at 5:24am

आदरणीय पीयूष जी, सादर अभिवादन!

सच्चाई को दर्शाती रचना के लिए बधाई स्वीकारें! पुलिस के चक्कर से बचने के लिए ही आमजन आज 'संवेदनहीन' हो गए है!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 13, 2012 at 10:06pm

//यह पंक्ति इस कथा में अनिवार्य तो बेशक नही थी, पर मुझे कथा की गति हेतु किंचित उपयोगी अवश्य लगी, और इसीलिए इसे डाला ! हो सकता है यह त्रुटिपूर्ण हो,//

तब अनावश्यक सुझाव देने हेतु हमें हार्दिक खेद है भाईजी. आप साहित्य जगत को लाभान्वित करें.

सधन्यवाद

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on December 13, 2012 at 9:53pm

आदरणीय सौरभ जी, बहुत बहुत धन्यवाद लघुकथा अपने बहुमूल्य विचारों को रखने के लिए !

//ओटी के बाहर जलता बल्ब बंद हुवा और डॉक्टर बाहर निकले//

यह पंक्ति इस कथा में अनिवार्य तो बेशक नही थी, पर मुझे कथा की गति हेतु किंचित उपयोगी अवश्य लगी, और इसीलिए इसे डाला ! हो सकता है यह त्रुटिपूर्ण हो, चूंकि लघुकथा एक संयमी विधा है, और मै नवोदित ! अतः आपकी बात सादर स्वीकार्य है ! 

पुनः धन्यवाद !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 13, 2012 at 9:43pm

//“हो सकता है ये दुर्घटना तुम्हारी ही गाड़ी से हुई हो, और फिर तुम इसे अस्पताल लाए हों ! इसलिए चुपचाप चलो और जांच में मदद करो ! निर्दोष हो तो बच ही जाओगे !//

इस पारिभाषिक पंक्ति पर समाप्त हुई लघु-कथा ’संवेदनहीन’ आज के किसी जागरुक नागरिक को समाज के प्रति अदम्य उत्साह से निर्लिप्त कर देने के लिए काफी है. तथ्यात्मक सच्चाई ही लघुकथा बन कर प्रस्तुत हुई है.

//ओटी के बाहर जलता बल्ब बंद हुवा और डॉक्टर बाहर निकले//

इस पंक्ति या नाटकीयता की इस कथा में आवश्यकता थी भी क्या ? या, सामान्यतया ऐसा कहीं देखा है भी आपने ? जलता लाल बल्ब ?

भाईजी, लघुकथाओं में नाटकीयता के क्रम में तनिक भी शाब्दिकता कथा की सान्द्रता को विरल कर देती है. संयम न रखा गया तो यही शाब्दिकता आगे कथा के क्रम में वाचालता में परिणत हो जाती है. 

मैं इस तरह की एक भयंकर दुर्घटना का भुक्तभोगी रहा हूँ, इसी से कह पा रहा हूँ. बहरहाल, लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई.

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on December 13, 2012 at 9:41pm

दीपक भाई जी, हो सकता है कोई और लघुकथा भी हो, पर मैंने अभी तक नही पढ़ी है ! सादर !

Comment by Dipak Mashal on December 13, 2012 at 9:38pm

हालांकि इस विषय पर एक लघुकथा और पढी थी जिसका अंत भी काफी मिलता-जुलता था, मगर फिर भी यह लघुकथा अच्छी ही कहायेगी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"अनुज बृजेश , प्रेम - बिछोह के दर्द  केंदित बढ़िया गीत रचना हुई है , हार्दिक बधाई आदरणीय…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय रवि भाई  ग़ज़ल पर उपस्थिति  हो  उत्साह वर्धन  करने के लिए आपका…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"अनुज बृजेश ,  ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका आभार , मेरी कोशिश हिन्दी शब्दों की उपयोग करने की…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय अजय भाई ,  ग़ज़ल पर उपस्थिति हो  उत्साह वर्धन करने के लिए आपका आभार "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आ. नीलेश भाई ग़ज़ल पर उपस्थिति और उत्साह वर्धन के लिए आपका आभार "
yesterday
Ravi Shukla commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आदरणीय अजय जी किसानों को केंद्र में रख कर कही गई  इस उम्दा गजल के लिए बहुत-बहुत…"
yesterday
Ravi Shukla commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी, अच्छी  ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें. अपनी टिप्पणी से…"
yesterday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाई जी नमस्कार ग़ज़ल का अच्छी प्रयास है । आप को पुनः सृजन रत देखकर खुशी हो रही…"
yesterday
Ravi Shukla commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय बृजेश जी प्रेम में आँसू और जदाई के परिणाम पर सुंदर ताना बाना बुना है आपने ।  कहीं नजर…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

सार छंद 16,12 पे यति, अंत में गागाअर्थ प्रेम का है इस जग मेंआँसू और जुदाईआह बुरा हो कृष्ण…See More
Thursday
Deepak Kumar Goyal is now a member of Open Books Online
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service