For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुझको "तुम्हारी" ज़रूरत है!

मुझको "तुम्हारी" ज़रूरत है!


दूर रह कर भी तुम सोच में मेरी इतनी पास रही,
छलक-छलक आई याद तुम्हारी हर पल हर घड़ी।
पर अब अनुभवों के अस्पष्ट सत्यों की पहचान
विश्लेषण करने को बाधित करती अविरत मुझको,
"पास" हो कर भी तुम व्यथा से मेरी अनजान हो कैसे
या, ख़्यालों के खतरनाक ज्वालामुखी पथ पर
कब किस चक्कर, किस चौराहे, किस मोड़ पर
पथ-भ्रष्ट-सा, दिशाहीन हो कर बिखर गया मैं
और तुम भी कहाँ, क्यूँ और कैसे झर गई
मौलसिरी के फूलों की कोमल पंखुरियों-सी ऐसे !


सच है, मेरे ख़्यालों के ब्रह्मांड को दीप्तिमान करती
मन-मंदिर में मधुर छविमान स्नेहमयी देवी हो तुम,
तुम आराध्य-मूर्ती हो, पूजता हूँ तुमको अविरल,
पर ... पर मैं तुमको पहचानता नहीं हूँ,
क्योंकि
तुम दर्शनीय देवी सही, पर तुम "वह" नहीं हो ।


तुम्हारी अन-पहचानी दिव्य आकृति तो ख़्यालों में
मेरे ख़्यालों के शिल्पकार ने रातों जाग-जाग
काट-छांट कर, छील-छील कर, जोड़-जोड़ कर
अपनी कलात्मक कल्पना में गढ़ी है ।
कभी इस परिवर्तन, कभी उस संशोधन में रत
इस शिल्पकार से मुझे बड़ी खीझ होती है अब,
कि मुझको उसकी काल्पनिक देवी की नहीं,
मुझको तो आज केवल तुम्हारी ज़रूरत है --
 

तुम, जो सरल स्वभाव में पली, हँस-हँस देती थी,
बात-बात में बच्चों-सी शैतान, चुलबुली,
तुम ... जो मुझको लड़खड़ाते-गिरते देख
इस संसार से सम्हाल लेती थी,
लड़फड़ाता था मैं तो हाथों मे मेरे हाथों को थामे,
ओंठों से अकस्मात उनकी लकीरें बदल देती थी,
मेरी कुचली हुई आस्था की संबल थी तुम ...
मेरी उदास ज़िन्दगी के सारे बंद दरवाज़े खोल,
प्यार की नई सुबह बन कर
मेरे भीतर के हर कमरे, हर कोने में इस तरह
मुस्कराती रोशनी-सी बिछ जाती थी तुम !


तुम ... मेरे जीवन की चिर-साध, कहाँ हो तुम ?


नीरवता से व्यथित, व्याकुल, उदास हूँ मैं,
मुझको देवी की नहीं, तुम्हारी ज़रूरत है ।
 
                    -------

Views: 517

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 15, 2014 at 1:00pm

उत्कृष्ट विचारों को कितने प्रभावशाली शब्दों में अभिव्यक्त किया है आपने ! पढ़कर मंत्रमुग्ध हूँ !  मेरी हार्दिक बधाई एवं सादर नमन आपको।

Comment by vijay nikore on January 27, 2013 at 6:31pm

आदरणीय सौरभ जी:

न जाने कैसे मुझसे इस कविता पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए आभार प्रकट करना रह गया,

इसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ। सराहना के लिए आपका शत-शत धन्यवाद। कृप्या ऐसे ही

मार्ग-दर्शन कराते रहें।

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on January 27, 2013 at 6:22pm

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी:

मेरी कविता की सराहना के लिए आपका आभार। प्रतिक्रिया आज ही देखी,

विलंब के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on December 22, 2012 at 6:53pm

आदरणीया सुमन मिश्रा जी, अन्वेषा अन्जुश्री जी, राजेश कुमारी जी,

आदरणीय लक्षमण प्रसाद जी और सौरभ पांडय जी,

सराहनापूर्ण अभिव्यक्ति एवं उत्साहवर्धन के लिए आप सभी का हार्दिक धन्यवाद l

सादर और सस्नेह,

विजय निकोर

 

 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 18, 2012 at 12:36pm

दिल से लिखी गयी अंतर्मन को छू जाने वाली रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारे


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 17, 2012 at 5:47pm

एक परिपक्व मस्तिष्क से निकले गहन भाव शब्द जो दिल को छू कर निकलते हैं रचना में एक निश्छल प्यार के दर्शन का एहसास होता है बहुत बहुत बधाई आपको आपकी पहली रचना पढ़ी आगे भी इन्तजार रहेगा 

Comment by Anwesha Anjushree on December 17, 2012 at 5:33pm

बीते पल , अद्भुत पल , सपनो से सुंदर पल, और उनका सुंदर वर्णन ! प्रेम की सुंदर छवि का दर्शन। नमन 

Comment by SUMAN MISHRA on December 17, 2012 at 1:54pm

यादों में  दर्द का शाब्दिक संगम...नमन आपके भावों को....सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 17, 2012 at 10:42am

आदरणीय विजय जी, आपकी संभवतः पहली रचना देख रहा हूँ. (इससे पहले वाली आपकी रचना को इस रचना को देखने के बाद देखा हूँ). आपका भावों को साझा करना अच्छा लगा है. विशेष यह भी कि आप हर इस-उस क्षणिका के आवेश में शाब्दिक हो जाने के मोह में नहीं पड़ते. आपकी दो रचनाओं से तो यही लगा है. 

प्रस्तुत रचना का कवि अपनी समस्त उधेड़बुन के परिप्रेक्ष्य में आदर्श और व्यावहारिकता के मध्य संतुलन चाहता या साधता प्रतीत होता है. उसे पटल पर अन्योन्याश्रय की देह का होना उतना ही आवश्यक लगता है जितना कि उस इकाई की वैचारिकता उसे लुभाती है. इस विचार का अच्छा प्रस्तुतिकरण हुआ है. वैसे रचना में शाब्दिकता या प्रयुक्त बिम्बों में वही-वहीपन की उपस्थिति बार-बार झटके देती है, लेकिन मैं यह मान कर चल रहा हूँ कि कवि द्वारा साझा हुए विचार मंच पा रहे हैं, और यह ही अधिक अभिभूतकारी है.

आपकी रचनाओं का इंतज़ार रहेगा.  .. सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service